
रेजल डेजल की ओर से सजाई गई इस महफिल में सबसे पहले एक डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई, जिसमें फिराक खुद अपना कलाम पढ़ते हुए दिखे। उर्दू गजल के जानकार महावीर कुमार जैन ने फिराक गोरखपुरी की शख्सियत और शायरी पर रोशनी डाली। इसके बाद शुरू हुआ गजलों का सिलसिला। पहली ही गजल थी सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं पर इस तर्के मोहब्बत का भरोसा भी नहीं...। इस पहली ही गजल ने माहौल बना दिया।
हीरानंद दानीवर लफ्जों की अदायगी इस तरह करते हैं कि उसके जरिये शायर के जज्बात सुनने वालों तक सीधे पहुंचते हैं। उनकी बेहतरीन अदायगी शेर के मानी अच्छी तरह बयान कर देती है। दानीवर नामचीन गजल गायकों की तरह नाजो-अंदाज नहीं दिखाते, वे बेहद सादगी से गाते हैं और उनकी यही सादगी सुनने वालों को पसंद आई। महफिल की दूसरी गजल भी बेहतरीन थी, यूं तो हुआ कौन किसी का उम्र भर के लिए फिर भी...,इस गजल में फिराक ने फिर भी लफ्ज को बहुत खूबी से इस्तेमाल किया है और दानीवर ने भी उसे उतनी ही खूबी से अदा किया। इसके बाद गजल पेश हुई छलक के कम न हो एेसी कोई शराब नहीं...।
गजलों के इस सिलसिले की एक और खूबी थी साजों की संगत। वॉयलिन पर कमल कामले, संतूर पर मंगेश जगताप, हारमोनियम पर राजेन्द्र नागले, तबले पर हेमेन्द्र महावर। इन सबने गजलों को और सुरीला बनाया। खास तौर से वॉयलिन और संतूर की स्वर लहरियों ने सुनने वालों को सुकून पहुंचाया। तबले के लिए भी तालियां बजीें। बहुत दिनों बाद शहर में एेसी महफिल सुनने को मिली, जिसमें शायरी और गायकी दोनों आला दर्जे की थी। आमतौर पर फिराक की शायरी को मुश्किल माना जाता है, पर यहां पूरे भरे हुए हॉल को देखकर लगा कि अच्छी शायरी पसंद करने वालों की कमी नहीं है। कार्यक्रम का संचालन किया संजय पटेल ने।