
सबसे ज्यादा छह सांसदों को एस्टीमेट कमेटी से हटाया गया है। ये हैं विनोद खन्ना, दर्शना विक्रम जडोह, संजय जायसवाल, कीर्ति आज़ाद, ओम बिड़ला और गणेश सिंह। जबकि एसएस अहलूवालिया, दुष्यंत सिंह और रमेश पोखरियाल निशंक को लोक लेखा समिति से हटाया गया है। वरुण गांधी, नंद कुमार सिंह चौहान और पंकज चौधरी को कमेटी ऑन पब्लिक अंडरटेकिंग से हटाया गया है।संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू बीजेपी सांसदों को बार-बार इस बारे में हिदायत देते रहे हैं। बीजेपी संसदीय दल की बैठक में नायडू ने सांसदों को संसदीय समितियों में मन लगाने की नसीहत दी थी।
इसके विपरीत सांसदों की दूसरी दलील है। ये वो समितियां हैं, जिनमें मॉनसून और शीत सत्र के बीच गैरहाजिरी की बात कही गई। मगर उसी दौरान बिहार के चुनाव में सांसद व्यस्त रहे। जबकि राजस्थान के सांसद स्थानीय निकाय के चुनाव में पार्टी का काम कर रहे थे।एसएस अहलूवालिया को पार्टी की ही ओर से एक अन्य संसदीय समिति की जिम्मेदारी सौंपी गई थीं और वो एक साथ दो समितियों की बैठक में हिस्सा नहीं ले सकते थे। हटाए गए एक सांसद ने कहा कि चुनावों में काम करने के साथ उसने कई बैठकों में भी हिस्सा लिया। मगर इसके बावजूद उसे हटा दिया गया।
बीजेपी अपने सांसदों को वक्त की पाबंदी की नसीहत देती रही है। इससे पहले संसदीय दल में देर से आने वाले सांसदों को भी टोका जा चुका है। आधार जैसे महत्वपूर्ण बिल पर भी सांसदों की बड़ी संख्या में ग़ैरमौजूदगी ने पार्टी को चिंतित कर दिया था। पार्टी का कहना है कि इस तरह की कार्रवाई जरूरी थी, ताकि एक कड़ा संदेश दिया जा सके।
कई बार संसद की कार्यवाही सांसदों की अनुपस्थिति के कारण प्रभावित होती है , शोरशराबा तो आम बात है, वेतन वृद्धि भी चाहते हैं पर उत्तर दायित्व पूरा नहीं करना चाहते |जनता को अधिकार होंना चाहिए की ऐसे सांसदों को वापिस बुला ले |
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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