
सलीम खान के पिता वेल्डिंग का काम करते थे। कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी, लेकिन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में कोई कमी नहीं करना चाहते थे। सलीम पढ़ाई में अच्छे थे, लेकिन अक्सर बीमार रहते थे। इसी बीमारी के चलते छठी कक्षा में पहली बार फेल हुए थे। वे सागर के सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। रिजल्ट खराब होने के बाद निराश हो गए, लेकिन परिवार के लोगों ने हिम्मत बढ़ाई। अगले साल उन्होंने फिर से परीक्षा दी और अच्छे अंकों से पास हो गए।
फेल होने का लगा ठप्पा
वर्ष 1988 में जब वे बारहवीं में थे तो परिवार महाराष्ट्र के नासिक आ गया था। परीक्षा का समय आया तो बीमारी एक बार फिर उनके रास्ते की रुकावट बनकर खड़ी हो गई। वे सारे पेपर नहीं दे पाए और एक बार फिर फेल का ठप्पा लग गया। उनके दोस्त मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी में लग गए, लेकिन सलीम पीछे रह गए। उन्हें लगा कि पढ़ाई कहीं छूट न जाए, लेकिन परिवार के लोगों ने एक बार फिर निराशा से उबरने में उनकी मदद की।दोबारा तैयारी कर परीक्षा दी और पास हुए। परीक्षा में फेल होने का सिलसिला यही नहीं रुका। उन्होंने सागर के हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय में ग्रेजुएशन में प्रवेश लिया। पहले दो साल सब कुछ ठीक रहा, लेकिन अंतिम वर्ष में वे फिर गंभीर रूप से बीमार हो गए। उनकी तैयारी अच्छी नहीं हो पाई और फिर फेल हो गए।
लोग उड़ाने लगे मजाक
दोस्त और रिश्तेदार उनका मजाक उड़ाने लगे और सलीम का खुद पर से विश्वास उठने लगा। उनके दिमाग में यह बात बैठ गई कि परीक्षा में पास होना सबसे मुश्किल काम है। कॅरिअर की चिंता होने लगी, क्योंकि ग्रेजुएशन किए बिना अच्छी नौकरी मिलने का सवाल ही नहीं था। -सलीम बताते हैं कि मैंने तय किया कि मेरे पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं। आगे बढ़ना है तो सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई पर ही ध्यान देना होगा। वे जुटे रहे।
जिद के सहारे मिली कामयाबी
वे इतिहास के छात्र थे और अब्राहम लिंकन को उन्होंने अपनी प्रेरणा बनाया। लिंकन लगातार चुनाव हारे, लेकिन अपनी जिद के सहारे ही एक दिन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। उन्होंने परीक्षा के लिए फिर से कमर कसी और दिन-रात तैयारी में जुट गए। उन्हें कामयाबी मिली। -इसके बाद तो उनके लिए कॅरिअर के इतने विकल्प खुल गए कि सलीम के लिए कुछ भी फैसला करना मुश्किल होने लगा।