
मंगलवार को मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता संभागीय कुशवाहा समाज के अध्यक्ष वैजनाथ की ओर से अधिवक्ता मनीष वर्मा व विनोद सिसोदिया ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि म्युनिसिपल कार्पोरेशन एक्ट की धारा- 392 (बी) में साफतौर पर प्रावधान किया गया है कि बिल्डर्स, कॉलोनाइजर्स व सहकारी समितियों को भूखंड निर्धारण की प्रक्रिया में अनिवार्य तौर पर 15 फीसदी प्लॉट गरीब तबके लिए आरक्षित करने चाहिए। इसके बावजूद जबलपुर सहित समूचे प्रदेश में मनमानी जारी है।
इसके तहत सारे के सारे प्लॉट महंगे दामों में बेच दिए जाते हैं। इस वजह से कमजोर अर्थव्यवस्था वालों का अपने घर का सपना बस सपना बना हुआ है। वे किराए के मकान में जिन्दगी गुजारने विवश हैं। ताज्जुब की बात तो यह है कि मध्यप्रदेश के जनसंपर्क विभाग की वेबसाइट तक में इस प्रावधान के सिलसिले में जानकारी नदारद है।
स्मार्ट सिटी बनाएं, पर गरीबों का ख्याल रखकर
बहस के दौरान अधिवक्ता मनीष वर्मा व विनोद सिसोदिया ने दलील दी कि बेशक जबलपुर को स्मार्ट सिटी बनाया जाए, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि गरीबों की पूरी तरह अनदेखी कर दी जाए। समाज में हर वर्ग को जीवन जीने का अधिकार संविधान ने दिया है। लिहाजा, गरीबों को उनके अधिकार मिलने ही चाहिए।