कृपया मध्यप्रदेश शासन सामान्य प्रशासन भोपाल के ज्ञाप क्र. एफ 10/3/2006/1/9 भोपाल दिनांक 26.08.2014 (संलग्न) का अवलोकन करने का कष्ट करें। जिसके द्वारा राज्य सरकार के अधिकारी कर्मचारियों को कम्प्यूटर प्रशिक्षण की अनिवार्यता की गई थी।
CPCT सर्टिफिकेट के कारण उपस्थित हुआ संकट
प्रावधानानुसार लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग समेत कई शासकीय विभागों द्वारा संदर्भित शासनादेशानुसार कार्यरत सेवकों को शासन द्वारा प्रदत्त कम्प्यूटर प्रशिक्षण का लाभ आज पर्यान्त तक किसी भी सेवक को प्रदान नहीं किया गया है। फलस्वरूप कम्प्यूटर डिप्लोमा एवं कम्प्यूटर टाइपिंग दक्षता प्रमाणीकरण परीक्षा अनिवार्यता के नाम पर लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में लगभग 70 अनुकम्पा प्राप्त लिपिकीय कर्मचारियों की सेवायें समाप्ति के साथ-साथ अन्य विभिन्न विभागों में शासकीय सेवा पदों पर सेवा में रहते दिवंगत लोक सेवकों के आश्रित को पारिवारिक भरण पोषण हेतु देय अनुकंपा आधार पर नियुक्त लिपिकीय अनेको कर्मचारियों की सेवाये समाप्त की गई एवं अनेंको कर्मचारी पर सीपीसीटी परीक्षा के आधार पर सेवायें की समाप्ति का संकट मंडरा रहा है।
पहले क्या नियम था
उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती नियमानुसार लागू लिपिक संवर्गीय कर्मचारी की योग्यता हायर सेकेंडरी के साथ हिंदी मुद्रलेखन परीक्षा की अनिवार्यता थी। हिंदी टाइपिंग पास ना कर पाने की स्थिति में देय वार्षिक वेतन वृद्धि परिवीक्षाकाल समाप्ति समेत सभी आनुवांशिक लाभों से इन कर्मचारियों को वंचित रखा जाकर उन्हें सेवा के बदले मासिक वेतन भुगतान की कोई रोक नहीं थी।
परिवार के समक्ष जीविकापार्जन संकट
वर्ष 2014 से कंप्यूटर प्रचलन प्रारंभ होते ही शासन द्वारा जारी संदर्भित निर्देशानुसार कार्यरत सेवकों को विभागों द्वारा शासकीय व्याय पर प्रशिक्षण दिये जाने की विभागों द्वारा की गई अवहेलना व लापरवाही के कारण कम्प्यूटर प्रशिक्षण से बंचित किया गया है, वही दूसरी ओर लिपिकीय कर्मचारियों से लागू सीपीसीटी शर्तपूर्ती के नाम पर कम्प्यूटर हिंदी टाइपिंग के स्थान पर अव्यवहारिकरूप से मूल भर्ती सेवा नियमों के प्रावधानों के विरुद्ध इन हाई स्कूल उत्तीर्ण आधार पर सेवा में आये कर्मचारियों से लिखित परीक्षायें एवं स्नातक/स्नात्कोतर (UPSC, MPPSC, SSC) शिक्षा स्तर की परीक्षा प्रश्नावाली को उत्तीर्ण करने हेतु बाध्य किये जाने की अनिवार्यता के बिना प्रशिक्षण / ज्ञान के अत्यंत कठोर नियम लागू करके उक्त परीक्षा उत्तीर्ण न कर पाने पर सीधे सीधे सेवाएं समाप्त कर दिये जाने की कार्यवाही से इन कर्मचारियों का भविष्य अंधकार में एवं परिवार के समक्ष जीविकापार्जन संकट उत्पन्न हो गया है। एवं शासन की व शासकीय विभागों की संवेदनहीनता पूर्वक उनसे भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त जीवन जीने के मौलिक अधिकारों को छीना गया है।
उल्लेखनीय है कि जहां राज्य मंत्रालय सहित डायरेक्टेड विभागाध्यक्ष मुख्यालयों समेत समूचे प्रदेश में विगत 30 वर्षों से सामान्य भर्ती पर रोक के कारण रिक्त पड़े पदों और संरचनाओ में लिपिकीय कर्मचारियों की कमी के की आड़ में संलग्नीकरण नियमों को ताकि पर रखकर अधिकारियों द्वारा बिना सक्षम अनुमोदन अन्य जिला तहसील कार्यालयों की संरचनाओं एवं संविदा ठेकेदारी आउटसोर्स कार्यभारित दैनिक वेतन एवं भारी मात्रा में मैदानी तकनीकी अमले को सलग्न द्वारा कर्मचारियों से पद एवं पात्रता सामर्थ्य के विपरीत अनियमितता पूर्वक राज्यस्तरीय स्वरूप के लिपिकसंवर्गीय ओर प्रशासनिक कार्य कराए जाकर प्रशासकीय कार्य गुणवत्ता प्रभावित की जा रही है। वहीं कई वर्षों से शासन के रिक्त व स्वीकृत पदों पर नियुक्त पश्चात निर्बाध रूप से अनुभव एवं कार्य दक्षता पूर्वक सेवाएं दे रहे लिपिकों को अन्याय पूर्वक सेवा से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है।
(शील प्रताप सिंह पुंढीर) प्रांतीय अध्यक्ष, राज्य शासकीय कर्मचारी अधिकार संरक्षण संघ
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