
सर्वविदित है कि राज्यों के शासन का मुखिया मुख्यमंत्री होता है जबकि केंद्र शासित राज्यों जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है, यह ऐसे राज्य हैं जो राज्य नहीं बनाए जा सकते थे या राज्य नहीं बनाए गए या जिनको राज्य बनाना संभव नहीं था इसलिए इन्हें केंद्र के पाले में डाल दिया गया कि इन पर केंद्र शासन चलाए और केंद्र ने यह साफ कर दिया कि इन केंद्र शासित प्रदेशों का शासन भारत के राष्ट्रपति एक प्रशासक के माध्यम से करेंगे जिनका नाम होगा उप राज्यपाल। एक बात स्पष्ट दिखाई देती है कि केजरीवाल भले बहुमत के साथ लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव जीतकर आए हों लेकिन ना तो उन्हें और ना उनके सलाहकार को संविधान समझ में आता है और ना ही संघ की प्रक्रिया समझ में आती है|
भारत वर्ष में दो तरह के सरकारी कर्मचारी हैं| एक वो हैं जो केंद्र सरकार की सेवा में रत हैं और दूसरे वो हैं राज्य सरकार की सेवा में रत हैं| केंद्र सरकार के कर्मचारियों की सेवा शर्तें और भर्ती के नियम संसद तय करती है और उसके बारे में जो भी नियम-कायदा पारिभाषित किया गया है उसके लिए भारत के राष्ट्रपति को अधिकृत किया गया है| इसी प्रकार के नियम राज्यों में उनकी सेवा शर्तें और भर्ती के नियम राज्यों के विधानमंडल तय करते हैं और राज्यों के राज्यपाल को यह अधिकार दे दिया गया है कि वो विस्तृत नियम बना दें| अब कहीं भी केंद्र शासित प्रदेश का जिक्र नहीं है. संविधान में भी या तो यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन का जिक्र है या स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन का जिक्र है|
राज्य सरकार का उदाहरण ले तो मध्यप्रदेश सरकार और उसके कर्मचारियों के बीच कोई एक लाख मुकदमे लम्बित हैं | जिस तरह का व्यवहार राज्य सरकारे केंद्र और अपने कर्मचारियों के साथ करती है, वे प्रगति में बाधक हैं | दिल्ली को छोड़ दे तो राज्यों में राज्यपाल अपनी भूमिका इस दिशा में ठीक निर्वहन नहीं कर रहे हैं , वस्तुत: राज्य में राज्यपाल और केंद्र शासित राज्यों में उप राज्यपाल नियोक्ता की भूमिका में भी हैं | उनका काम हर उस शासकीय सेवक पर निगहबानी का है जो राज्य के खजाने से वेतन ले रहा है |