
यह मामला हाईकोर्ट के पूर्व एक्टिंग सीजे कृष्ण कुमार लाहोटी व वर्तमान प्रशासनिक न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन की अध्यक्षता वाली युगलपीठों के दो अलग-अलग विरोधाभासी आदेशों की कानूनी-दृष्टि से समुचित व्याख्या से संबंधित था। इसीलिए मामले को फुलबेंच के लिए रेफर किया गया। लंबे समय तक चली सुनवाई के बाद अंततः फुलबेंच ने अपना फैसला सुना दिया। जिसके साथ स्पष्ट हो गया कि पंचायत सचिव को सुनवाई का मौका नहीं दिया जा सकता।
इस मामले में लावाराम और हरिओम नामक पंचायत सचिवों के मामलों की व्याख्या की गई। पहले मामले में जस्टिस केके लाहोटी ने निर्धारित किया था कि क्रिमनल केस में आरोपी बनने के साथ ही पंचायत सचिव पंचायत कर्मी बतौर पदोवनत हो जाएगा। साथ ही उसे नैसर्गिक न्यायसिद्घांत के तहत सुनवाई का अवसर भी मिलेगा। जबकि हरिओम वाले केस में जस्टिस राजेन्द्र मेनन ने तय किया कि पंचायत सचिव बेशक पंचायत कर्मी के रूप में पदावनत होकर सेवा में बना रह सकता है लेकिन उसे सुनवाई का अवसर नहीं दिया जा सकता। ऐसा इसलिए क्योंकि 2012 में पंचायत सचिवों की नियुक्ति, निलंबन व बर्खास्तगी आदि के संबंध में नियम आने के साथ उनका कैडर सुनिश्चित हो चुका है। इसलिए वे उसी के तहत अधिशासित होंगे।