कर्मचारी को जबरन वीआरएस नहीं दे सकती सरकार: हाईकोर्ट

ग्वालियर। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने मध्य प्रदेश परिवहन निगम (रोडवेज) के उस आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसमें एक लेखपाल को दबाव डालकर वीआरएस दिया था। कोर्ट ने कहा कि किसी भी कर्मचारी पर दवाब डालकर वीआरएस नहीं दिया जा सकता है। अगर उसने एक दिन में दो आवेदन पेश किए हैं तो दोनों का निराकरण जरूरी है।

लालता प्रसाद बघेल रोडवेज में लेखपाल के पद पर कार्यरत थे। रोडवेज की खस्ता हालत होने पर कर्मचारियों को वीआरएस दिया जा रहा था। लालता प्रसाद से भी 30 सितंबर 2009 को विभाग ने दबाव डालकर वीआरएस का आवेदन ले लिया था, लेकिन उसी लालता प्रसाद ने एक और आवेदन विभाग में प्रस्तुत किया कि मुझे वीआरएस नहीं चाहिए, लेकिन रोडवेज ने इस आवेदन पर विचार नहीं किया और वीआरएस के आवेदन पर विचार करते हुए उसे वीआरएस दे दिया।

इसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता एचके शुक्ला ने कोर्ट को बताया कि विभाग ने दबाव डालकर वीआरएस का आवेदन लिया था। विभाग के दबाव में आकर आवेदन कर दिया, लेकिन उसी दिन लालता प्रसाद ने वीआरएस लेने से इनकार कर दिया था।

जबलपुर हाईकोर्ट ने एक आदेश दिया था कि अगर कोई कर्मचारी वीआरएस का आवेदन देता है और वह शाम को वापस लेता है तो विभाग उसे वीआरएस नहीं दे सकता है। विभाग ने लालता प्रसाद को गलत तरीके से वीआरएस दिया गया है। कोर्ट ने विभाग के वीआरएस देने के फैसले को निरस्त कर दिया है और उसे नौकरी का लाभ देने का आदेश दिया है।
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