नकली दवा बनाने वाली कंपनियों से स्वास्थ्य मंत्री के रिश्ते

भोपाल। मप्र कांग्रेस कमेटी ने एक बार फिर स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा को निशाने पर लेते हुये दावा किया है कि उनके ऐसी कई दवा कंपनियों से घनिष्ठ रिश्ते हैं जो नकली दवाओं का निर्माण करती हैं। कांग्रेस ने यह आरोप पीसीसी में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान लगाये। पढ़िये कांग्रेस का आरोप पत्र:

मान्यवर पत्रकार बंधुओं,
प्रदेश के बड़वानी जिला चिकित्सालय में 40 लोगों की आंखों की रोशनी छीनने वाली घटना ने राज्य विधानसभा में वर्ष प्रस्तुत प्रशासकीय प्रतिवेदन, जिसमें वर्ष 2009-2014 तक प्रदेश के शासकीय अस्पतालों में सप्लाई होने वाली 400 दवाओं के अमानक होने की बात कही गई थी, उसे साबित कर दिया है। कांगे्रस का सीधा आरोप है कि प्रदेश में विभिन्न होम्योपेथिक और एलोपैथिक दवाऐं सप्लाई करने वाली कंपनियों से स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा से सीधे संबंध हैं और ये कंपनियां ऊंची कीमतों पर स्वास्थ्य मंत्रालय को अपनी दवायें सप्लाई कर रही हैं, इसके एवज में स्वास्थ्य मंत्री को बड़ी राशि कमीशनखोरी के रूप में प्राप्त हो रही है। इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए, क्योंकि मामला आम लोगों की जिंदगी से जुड़ा हुआ है। भ्रष्टाचार में अंधी सरकार की इन्हीं करतूतों ने 65 लोगों की आंखों की रोशनी होने के बावजूद भी उन्हें हमेशा के लिए अंधा बना दिया है। 

कांग्रेस का सीधा आरोप है कि इस बड़ी घटना में मोतियांबिंद के आॅपरेशन के दौरान इंदौर स्थित सुधीर सेठी एवं संजय सेठी के स्वामित्व वाली जिस बैरल कंपनी, जिसका पता 133, भूतल-कंचन बाग और प्रशासनिक कार्यालय, 43-44, द्वितीय तल, दवा बाजार, 13-14, आरएनटी मार्ग, इंदौर (म.प्र.) ने प्रयुक्त दवा ‘आॅईवाॅश’ स्वास्थ्य विभाग को सप्लाई की है, उसकी उत्पादन क्षमता से अधिक के आॅर्डर उसने कमीशनखोरी के माध्यम से प्राप्त किये हैं, जबकि यह कंपनी दो वर्ष पूर्व राजधानी भोपाल के हमीदिया अस्पताल में दवा सप्लाई करने वाली अन्य तीन कंपनियों के विरूद्ध हुई जांच में संदिग्ध पायी गई थी, जबकि  3 जनवरी 2009 से 2 जनवरी 2014 के लिए इस कंपनी को ब्लैक लिस्टेड घोषित कर दिया गया था। इसी कंपनी ने वर्ष 2007 से 2009 तक करीब दो ट्रक माल सिर्फ कागजों पर ही सप्लाई कर स्वास्थ्य मंत्रालय से बड़ा भुगतान भी प्राप्त किया था। महत्वपूर्ण तो यह है कि इस ब्लैक लिस्टेड कंपनी के खिलाफ पांच सालों तक लगाया गया बैन वर्ष 2014 में ही समाप्त हुआ और राज्य सरकार ने उसे दवा सप्लाई करने हेतु 12 करोड़ रूपयों का ठेका क्यों, किसलिए और किस ईमानदारीपूर्ण शासकीय नीति के तहत दिया गया।  
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सप्लाई करने के पहले आई.व्ही. फ्लूड को 14 दिन परीक्षण एवं जीवाणु संक्रमण की जांच करने की जरूरत होती है। लिहाजा, सरकार ने इस परीक्षण अवधि एवं जांच का इंतजार भी क्यों नहीं किया? 

कांग्रेस का यह भी सीधा आरोप है कि स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा के निर्देश पर इस कंपनी सहित अन्य अमानक दवायें सप्लाई करने वाली कंपनियों को भारी लेनदेन के बाद डब्ल्यू.एच.ओ. (विश्व स्वास्थ्य संगठन) प्रमाण पत्र जारी करने हेतु फूड एंड ड्रग एसोशिएशन (एफडीए) सिफारिश करता है और जिन कंपनियों को स्वास्थ्य मंत्रालय मदद करना चाहता है, उसके हिसाब से नियम एवं शर्ते अलग-अलग तरीकों से ईजाद की जाती है। ऐसा ही लाभ दिलाकर इस कंपनी को स्वास्थ्य मंत्री ने करोड़ों रूपयों की सप्लाई करने का सीधा आर्थिक लाभ दिलाया। 

कांग्रेस का एक ओर गंभीर आरोप है कि व्यापम महाघोटाले में जेल में बंद और भाजपा व संघ परिवार से जुड़े एक नेता की उत्तरांचल में औषधि निर्माण की एक फैक्ट्री/कंपनी है, जिसमें सत्ता के बड़े रसूखदार परिवार की अघोषित पार्टनरशिप है और इस कंपनी ने प्रदेश में कई वर्षों से संचालित हो रही पं. दीनदयाल उपचार योजना में सप्लाई होने वाली दवाओं को महंगी कीमत पर अस्पतालों में सप्लाई किया है, इसकी भी जांच होनी चाहिए। 

कांग्रेस मुख्यमंत्री से यह भी जानना चाहती है कि उन्होंने जिन मोतियाबिंद से 40 प्रभावित मरीजों को 2-2 लाख रूपये की मुआवजा राशि की घोषणा की है, जो कुल मिलाकर 80 लाख रूपयों के करीब होगी को बढ़ाकर 5-5 लाख रू. की जाये, किंतु यह प्रश्न भी और अधिक विचारणीय है कि सरकार प्रभावितों को मुआवजा राशि देकर कथिततौर पर अपनी संवेदना तो प्रदर्शित कर रही है, किंतु इन 80 लाख रूपयों के एवज में उनके ही मंत्रिमंडल के सहयोगी स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा के सहयोग से उक्त दवा निर्माण कंपनी ने 12 करोड़ रू. सरकार से वसूले हैं, उन मंत्री के खिलाफ मुख्यमंत्री कौन सी पारदर्शी कार्यवाही करेंगे?

कांग्रेस शीघ्र ही प्रदेश में एनआरएचएम की तर्ज पर स्वास्थ्य विभाग में हुये बड़े घोटालों का पर्दाफाश करेगी। पार्टी की मांग है कि इस गंभीर और मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी घटना की जांच सीबीआई से करायी जाये, इसके सबसे बड़े दोषी स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा सहित बैरल ड्रग लिमिटेड के संचालकों, दोषी डाॅक्टरों और स्वास्थ्य महकमे के शीर्ष पदों पर बैठे और भ्रष्टाचार के माध्यम से आंखें मूंदे उन नौकरशाहों के विरूद्ध, जिन्होंने दागी कंपनियों को सप्लाई आॅर्डर दिलवाने में महती भूमिका दिलवायी है के विरूद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज हो, जिन ब्लैक लिस्टेड कंपनियों को लेनदेन के बाद पुनः बैन हटाया है, उन पर फिर से बैन लगाया जाये और उनके द्वारा सप्लाई की गई दवायें सार्वजनिक रूप से नष्ट की जाये।  

भवदीय
के.के. मिश्रा
मुख्य प्रवक्ता
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