चेन्नई से सबक ले, अब यह कहीं भी हो सकता है

राकेश दुबे@प्रतिदिन। भयानक बाढ़ से अस्त-व्यस्त चेन्नई पटरी पर लौट रही है। लोग किसी तरह पानी से जूझते हुए सुरक्षित जगहों पर जा रहे हैं। बिजली और टेलीफोन व्यवस्था बहाल हो रही है पर ,खाने-पीने की चीजों की भारी किल्लत है। रेल, सड़क और हवाई परिवहन भी धीरे-धीरे संभव हो रहा है। यह भी साफ हो गया है कि स्थानीय प्रशासन बाढ़ से मुकाबला करने और नागरिकों को राहत पहुंचाने में पूरी तरह नाकाम रहा  है। जिन सरकारी कर्मचारियों को राहत पहुंचाने के लिए युद्ध स्तर पर जुटा होना चाहिए था , उन्हें यह तक नहीं पता कि उन्हें क्या करना है, क्योंकि प्रशासन ने बाढ़ से निपटने की कोई तैयारी नहीं की थी।

यह सब तब हुआ  है, जबकि मौसम विभाग ने अक्तूबर में ही राज्य सरकार को चेतावनी दे दी थी कि इस बार शीतकालीन मानसून में बाढ़ का खतरा हो सकता है।सन १९७६  में इस बार से भी ज्यादा बारिश हुई थी, लेकिन बाढ़ तब भी नहीं आई थी। बाढ़ की वास्तविक वजह यह है कि शहरी नियोजन और प्रबंधन की उपेक्षा । इसी वजह से मुंबई में भयानक बाढ़ का नजारा अक्सर देखने को मिलती है, वही वजहें चेन्नई की बाढ़ के पीछे भी हैं। सबसे बड़ी वजह यह है कि अतिरिक्त पानी के निकास और उसे बहाने के पर्याप्त इंतजाम नहीं किए जाना । जो प्राकृतिक निकास के रास्ते थे भी, वे अंधाधुंध निर्माण की वजह से बंद हो जाते हैं । पानी के निकास के लिए जो नाले बनाए गए, उनमें वैज्ञानिक व तकनीकी समझ का इस्तेमाल नहीं किया गया। इसकी वजह से इन नालों पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन बाढ़ के वक्त वे बेकार साबित होते हैं । इसकी मुख्य वजह यह है कि शहर को बसाने या उसके विस्तार के दौरान शहर नियोजकों और तकनीकी विशेषज्ञों की मदद नहीं ली जाती। नेता-अफसर-बिल्डर गठजोड़ अपने स्वार्थ और आर्थिक फायदों के लिए निर्माण-योजनाएं बना लेते हैं।

यह सिर्फ चेन्नई की कहानी नहीं है, यह भारत के हर छोटे-बड़े शहर व कस्बे की कहानी है। भारत में तेजी से शहरीकरण हो रहा है, लेकिन इसमें करीब  सारा का सारा शहरीकरण अनियोजित ढंग से, बिना सोचे-विचारे हो रहा है। कहीं भी बस्तियां बसाने में सारे प्राकृतिक, मानवीय व तकनीकी पक्षों पर विचार नहीं किया जाता, इसलिए कभी मुंबई में भीषण बाढ़ आती है, कभी केदारनाथ में तबाही होती है, कभी कश्मीर घाटी इसकी चपेट में आती है, तो कभी चेन्नई पानी में डूब जाती है। फिर भी कोई सबक नहीं सीखा जाता। यह सिलसिला यहीं रुकेगा नहीं, इसलिए अपने तौर-तरीके सुधारने के अलावा हमारे पास कोई उपाय नहीं है।

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com 

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