
मानव अधिकार को ‘मूलाधिकार' आधारभूत अधिकार अन्तर्निहित अधिकार तथा नैसर्गिक अधिकार भी कहा जाता है। ‘‘मानव अधिकार की कोई सर्वमान्य विश्वव्यापी परिभाषा नहीं है। इसलिये राष्ट्र इसकी परिभाषा अपने सुविधानुसार देते हैं। विश्व के विकसित देश मानवाधिकार की परिभाषा को केवल मनुष्य के राजनीतिक तथा नागरिक अधिकारों को भी शामिल रखते हैं।'' मानवाधिकार को कानून के माध्यम से स्थापित किया जा सकता है। इसका विस्तृत फलक होता है, जिसमें नागरिक, राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते हैं। इसके लिए हमारे संविधान में भी उल्लेख किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 14,15,16,17,19,20,21,23,24,39,43,45 देश में मानवाधिकारों की रक्षा करने के सुनिश्चित हैं।
10 दिसम्बर को पूरी दुनिया में “मानवाधिकार दिवस” के रूप में मनाया जाता है। “10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र की साधारण सभा ने संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा को अंगीकृत किया गया। मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा में प्रस्तावना एवं 30 अनुच्छेद हैं।” इस विश्वव्यापी घोषणा की प्रस्तावना में कहा गया है कि “मानव समुदाय के सभी सदस्यों के गौरवपूर्ण जीवन एवं समानता के अधिकार विश्वव्यापी स्वतंत्रता, न्याय एवं शान्ति के अधिकार केलिए है, जहाँ पुरुष एवं महिला अच्छे सामाजिक विकास के साथ अधिक से अधिक स्वतंत्रता प्राप्त कर सके।” अर्थात अनुच्छेद 1 से लेकर अनुच्छेद 20 तक व्यक्ति के नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों की व्याख्या की गई है तथा अनुच्छेद 21 से 30 तक व्यक्ति के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक अधिकारों को सम्मिलित किया गया है।
सामान्य रूप से मानवाधिकारों को देखा जाय तो मानव जीवन में भोजन पाने का अधिकार , शिक्षा का अधिकार , बाल शोषण , उत्पीडन पर अंकुश , महिलाओं के लिए घरेलु हिंसा से सुरक्षा, उसके शारीरिक शोषण पर अंकुश , प्रवास का अधिकार , धार्मिक हिंसा से रक्षा आदि को लेकर बहुत सारे कानून बनाये गए हैं जिन्हें मानव अधिकारों से सम्बंधित सबसे महत्वपूर्ण कार्य सर्वसम्मति से मानव अधिकारों पर एक राय बनाना है। विभिन्न वर्गों जिनमे महिला ,अल्पसंख्यक ,अप्रवासी ,शोषित एवं अन्य वर्ग जिनके अधिकारों का हनन होता है पर रायशुमारी कर एकमत बनाने का प्रयत्न करना है। इसके अलावा नियमो का संदर्शन ,अधिकारों के प्रति सम्मान को बढ़ावा ,अधिकारों की गतिशीलता एवं अधिकारों की सुरक्षा मानव अधिकार की सुरक्षा करने वाले संस्थानों एवं अभिकर्ताओं का प्रमुख उदेश्य है।
किसी भी देश के विकास के लिए उस देश में सामाजिक विकास आवश्यक होता है एवं सामाजिक विकास के लिए सामाजिक समस्याओं जैसे गरीबी ,बेरोजगारी एवं सामाजिक बहिष्कार जैसे समस्यायों पर ध्यान देना जरूरी है। शासन का काम है की वह समाज में अन्तर्निहित असुरक्षा की भावनाओं को मिटने के लिए समाज में व्याप्त आतंरिक कुरियियों एवं तंत्र में व्याप्त बुराइयों को मिटाये। इसके लिए व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक जरूरतें एवं परिवार , समाज एवं समूहों की जरूरतों पर ध्यान दिया जाए। मानव अधिकारों से जुड़े गरीबी ,भुखमरी ,बेरोजगारी,कुपोषण,नशा,सुनियोजित अपराध भ्रष्टाचार ,विदेशी अतिक्रमण,शस्त्रों की तस्करी आतंकवाद ,असहिष्णुता ,रंगभेद ,धार्मिक कट्टरता आदि बुराइयों का योजना बद्ध तरीके से निर्मूलन जरूरी है। मानवाधिकार की श्रेणी में रखा गया है।ये अधिकार सभी अन्योन्याश्रित और अविभाज्य है।
मानवीय गरिमा और आत्म सम्मान की घातक होने के कारण गरीबी मानव- अधिकारों के हनन् का सबसे बड़ा कारण है। जहाँ भूख है, वहाँ शान्ति नहीं हो सकती। अतः गरीबी को खत्म कर मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराये बिना मानव- अधिकार के लिए लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत सहित सभी विकासशील देशों में जनसंख्या का 1/5 भाग रात को भूखा सोता है, 1/4 को पीने के पानी सहित मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं तथा कुल जनसंख्या का 1/3 भीषण गरीबी का जीवन जी रहे हैं। इंडिया टुडे (26.सितंबर.2007) की एक रिपोर्ट के अनुसार 1 अरब से अधिक की भारतीय जनसंख्या में से 30.1 करोड़ गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। पूर्वोत्तर राज्य भी इसके अपवाद नहीं हैं। दशकों से इन राज्यों में आर्थिक विकास दर मंद रही है, जिससे बेरोजगारी बढ़ी है ,मानवीय शक्ति की बरबादी हुई और उग्रवादी समूहों में भर्तियाँ बढ़ी। पश्चिम बंगाल का नंदीग्राम मामला हो, अथवा उड़ीसा के गाँवों में भूख से त्रस्त किसानों द्वारा आत्महत्या के मामले, हमें यह सोचने के लिए विवश होना पड़ा है कि नई सामाजिक व्यवस्था निर्मित किए बिना भारत की बहुसंख्यक जनता के लिए मौलिक अधिकारों का कोई अर्थ ही नहीं है।
सुशील कुमार शर्मा
वरिष्ठ अध्यापक
शासकीय आदर्श उच्च .माध्य. विद्यालय गाडरवारा