राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश की राजधानी में सरकार और संदिग्ध वित्तीय लेन-देन पर नजर रखने वाली एजेंसियों की नाक के नीचे विदेशों में धन भेजने का खुला खेल चल रहा है | सरकार और उसकी एजेंसिया सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक की एक शाखा से 6,100 करोड़ रुपये से भी अधिक राशि विदेश भेजने का मामला पकड़े जाने के बाद भी सचेत नहीं हुई है | कालाधन जाने से नहीं रोका जा रहा है तो वापिस लाना तो दूर की कौड़ी है | निजी क्षेत्र के बैंक अभी भी इस काम में लगे हैं | तरीका वैसा ही है| एक दिन में कई खाते खोले जाते है और पैसा विदेश भेज दिया जाता है | बैंक की ऑडिट रिपोर्ट में फॉरेक्स खाते में असामान्य बढ़ोतरी दर्ज किए जाने पर भी वित्त मंत्रालय अनदेखी करता है | यह एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है ?
एक ही बैंक के फॉरेक्स खाते में वर्ष २०१४ -१५ में २१.५१९ करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ, जो पिछले साल के मुकाबले करीब पांच सौ गुना अधिक था! बैंक के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर यह संभव ही नहीं था। बैंक ने इतनी बड़ी नकदी स्वीकार करने के एवज में जमाकर्ताओं से कोई सुबूत नहीं लिया था। आयात के नाम पर एक साल तक पैसा बाहर भेजने का सिलसिला चलता रहा, पर बैंक आंख मूंदे रहा। अब जब मामले की जांच शुरू हुई, तो खातेदारों के पते भी फर्जी पाए गए।
यह घटना संबंधित बैंक और संदिग्ध वित्तीय लेन-देन पर नजर रखने वाली एजेंसियों की नाकामी का सुबूत तो है ही, काले धन पर लगाम लगाने की बात करने वाली केंद्र सरकार के लिए भी यह बड़ा झटका है। सत्ता में आने के बाद उसने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर काले धन पर एक उच्च स्तरीय समिति गठित की। पर इस मुद्दे पर उसे पिछले दिनों भी बड़ी नाकामी मिली, जब काले धन की स्वैच्छिक घोषणा की योजना शुरू करने के बावजूद उसे ४१४७ करोड़ रुपये ही हासिल हुए। यानी सख्त दंड का प्रावधान भी काला धन रखने वालों को डरा नहीं पाया।
ये मामले उस सरकार की छवि के लिए नुकसानदेह है, जो विदेश में जमा काला धन वापस लाने की गंभीरता का दावा कर रही है। यह ठीक है कि यह मामला सामने आने के बाद सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के साथ सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस जैसी एजेंसियां सक्रिय हुईं, पर इससे काले धन से जुड़े सामूहिक नाकामी का क्षोभ जरा भी कम नहीं होता।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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