भोपाल। मप्र हाईकोर्ट ने मप्र सरकार से पूछा है कि जब सरपंच और पंचायतों द्वारा नियुक्त गुरूजियों को नियमित किया जा सकता है तो विधिवत प्रक्रिया पूरी करके नियुक्त हुए संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण में समस्या क्या है ?
म.प्र. राज्य शिक्षा केन्द्र कर्मचारी अधिकारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर के द्वारा माननीय जबलपुर उच्च न्यायालय में याचिका क्र. 7440/2015 से केश दायर किया था। जिसमें उल्लेख किया गया था कि सर्वशिक्षा अभियान में प्रत्येक एक किलोमीटर में एक शिक्षा ग्यारंटी शाला खोली गई थी। जिसमें गुरूजियों की नियुक्ति सरंपचों और ग्राम समुदायों के द्वारा की गई थी।
गुरूजी की नियुक्ति प्रक्रिया यह थी कि गांव का सबसे पढ़े लिखे व्यक्ति को ग्राम सभा और संरपच के द्वारा प्रस्ताव पास कर उस लड़के को पढ़ाने के लिए शिक्षा ग्यांरटी शाला में रख लिया जाता था। उस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता का संघ बनाया जाता था। जिसे पालक-शिक्षक संघ कहते थे। उनका बैंक में खाता होता था और राज्य सरकार पालक शिक्षक संघ के खाते में गुरूजी को वेतन देने के लिए अनुदान देती थी। फिर उससे गुरूजी का भुगतान होता था।
इस प्रकार प्रदेश की शिक्षा ग्यांरटी शालाओं में 32 हजार गुरूजियों की नियुक्ति संरपचों और ग्राम समुदायों के द्वारा की गई थी। इसी प्रकार ग्राम पंचायतों में पंचायत कर्मियों की नियुक्ति भी की गई थी। सर्वशिक्षा अभियान में संविदा कर्मचारी अधिकारी भी कार्यरत थे जो कि विधिवत् चयन प्रक्रिया लिखित परीक्षा, साक्षात्कार के बाद उनकी नियुक्ति सक्षम प्राधिकारियों के द्वारा की गई थी।
राज्य सरकार ने संरपचों के द्वारा नियुक्त गुरूजियों और पंचायत कर्मियों को तो बिना किसी परीक्षा के सीधे ही नियमित कर दिया लेकिन जो संविदा कर्मचारी अधिकारी विधिवित् सीधी भर्ती के माध्यम् पारदर्शी चयन प्रक्रिया के माध्यम् से सक्षम अधिकारियों के द्वारा नियुक्त किये गये थे उनको नियमित नहीं किया गया। जबकि सरकार को सबसे पहले पारदर्शी चयन प्रक्रिया के माध्यम् से भर्ती किये गये संविदा कर्मचारियों को नियमित करना था।
संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के लिए अनेकों बार ज्ञापन दिया सरकार ने उस ज्ञापन के जवाब में बार-बार यह लिख देती थी कि संविदा कर्मचारियों के पद अस्थाई हैं इनको नियमित नहीं किया जा सकता। जबकि गुरूजियों और पंचायत कर्मी समुदाय के कर्मचारी थे उनका तो कोई पद भी नहीं था उसके बावजूद उनको नियमित करने के लिए सरकार ने पदों का निर्माण कर दिया और कैबिनेट के माध्यम् से नियमित कर दिया।
इस विसंगति को लेकर राज्य शिक्षा केन्द्र कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर ने एक याचिका माननीय जबलपूर उच्च न्यायालय में याचिका लगाई थी जिस पर माननीय उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से 30 सितम्बर तक जवाब मांगा है कि जब राज्य सरकार संरपचों के द्वारा नियुक्त गुरूजियों, पंचायत कर्मियों को नियमित कर सकती है तो विधिवत् चयन प्रक्रिया के माध्यम् से चयन हुये संविदा कर्मचारियों को क्यों नहीं ?