भोपाल। बेटी बचाओ अभियान के नाम पर मप्र सरकार ने 1200 करोड़ फूंक डाले लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। पूरा अभियान कागजों में और पैसा जेबों में सरक गया। मप्र में लिंगानुपात अभी भी 905/1000 है जो शर्मनाक है। इस अभियान का ज्यादातर पैसा शिवराज के बड़े बड़े फोटो वाले विज्ञापनों पर फूंक दिया गया। टीवी, अखबार, होर्डिंग, पोस्टर। ऐसा लगा मानो अब एक भी भ्रूण हत्या नहीं होने दी जाएगी, लेकिन अल्ट्रासाउंड सेंटर्स में लिंग परीक्षण और प्राइवेट हॉस्पिटल्स में भ्रूण हत्या लगातार जारी रही। उल्टे इस अभियान के कारण फीस बढ़ गई।
यह खुलासा मप्र की स्वास्थ्य विभाग की 2014-2015 की रिपोर्ट में हुआ। इसके अनुसार 1000 लड़कों पर 926 लड़कियां पैदा हुईं। उधर, जनगणना निदेशालय का एनुअल हेल्थ सर्वे (एएचएस) इसे भी नहीं मानता। एएचएस 2012-13 के अनुसार प्रति हजार लड़कों पर महज 905 लड़कियां ही जन्म ले रही हैं। यह 2011 की जनगणना प्रदेश में 0 से 6 साल के उम्र में प्रति हजार लड़कों पर 912 लड़कियों के औसत से भी कम है।
स्वास्थ्य विभाग के हेल्थ मैनेजमेंट इंफारमेशन सिस्टम (एचएमआईएस) रिपोर्ट के अनुसार पिछले चार सालों में 9 अंक की गिरावट आ चुकी है।
स्वास्थ्य मंत्री के शहर में बेटियां नहीं बचीं
एचएमआईएस 2014-15 के अनुसार सबसे कम लड़कियों का जन्म दतिया में हुआ। 1000 लड़कों के मुकाबले सिर्फ 887 लड़कियां पैदा हुईं। 15-16 की पहली तिमाही में यह आंकड़ा तो 856 तक गिर गया है। बता दें कि यह स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा का जिला है।
रीवा भी कम नहीं
रीवा में पिछले तीन साल से लड़कियों का जन्म लगातार कम होता जा रहा है। पिछले तीन साल से आंकड़ा 900 के भीतर है। हालत यह है कि एचएमआईएस 2014-15 की रिपोर्ट के अनुसार यहां जन्म के समय लिंगानुपात 896 था, जो 15-16 में 884 हो गया है। 2013-14 में 884 और व इसके पहले 928 था।
प्रदेश में इतना कम पैदा हो रहीं लाड़लियां
साल -- एचएमआईएस -- एएचएस
2011-12 -- 935 -- 904
2012-13 -- 932 -- 904
2013-14 -- 926 -- 904
2014-15 -- 926 -- 905
2015-16 -- 920 -- (पहली तिमाही के अनुसार)
आदिवासी जिले बेहतर
अलीराजपुर -- 982
अनूपपुर -- 971
बुरहानपुर -- 971
डिंडोरी -- 969
अशोकनगर -- 967