प्रदीप आर्या। हर तीसरे वर्ष चन्द्र और सौर वर्ष का समन्वय होने पर एक माह का मलमास या पुरुषोत्तम मास पड़ता है। इस बार 17 जून से 16 जुलाई तक मलमास है। मलमास के शुरू होने से अब हिन्दू धर्मावलंबियों के घर शादी-विवाह सहित कोई भी शुभ कार्य नहीं हो पाएगा। इस माह में किए गए दान, जप एवं तप से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
मलमास में प्रत्येक प्राणी को संयमित और सात्विक जीवन जीने का अभ्यास करना चाहिए।अर्थववेद, में इस माह को ईश्वर का आवास गृह कहा गया है। शिव पुराण में मलमास को साक्षात शिव का स्वरूप माना गया है। कहा गया है की सौ वर्ष तप करने से जो फल मिलता है वह मलमास में महज एक दिन के जप तप से प्राप्त हो जाता है। इस मास के अधिपति साक्षात पुरूषोत्तम श्री विष्णु है। जो भक्तों को दुर्लभ पद प्रदान करते है। इस मास में शिव एवं विष्णु की पुजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मलमास
एक सौर वर्ष 365 एवं एक चन्द्र वर्ष 354 दिनों का होता है दोनों वर्ष में ग्यारह दिनों का अन्तर होता है। पंचाग गणना हेतु सौर और चन्द्र वर्षों में एकरूपता लाने के लिए हर तीसरे वर्ष एक अतिरिक्त चन्द्रमास जोड़कर दोनों की अवधि समान कर ली जाती है। गणना के अनुसार सौर मास व चन्द्र मास में आए एक माह का अंतर ही मलमास कहलाता है।
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22 नवंबर तक नहीं है कोई शुभ मुर्हूत:
आचार्य दिनकर झा के अनुसार मलमास के कारण अगले 5 माह तक शुभ मुर्हूत नहीं पर रहे है। हरीशयन एकादशी के बाद चातुर्मास के शुरू होने,आषाढ़ मास में मलमास के कारण,श्रावण,भादव,एवं आश्विन मास में कोई भी मागलिक कार्य नहीें होने के कारण कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी के बाद 23 नवम्बर से शुभ मुहूर्त शुरू होंगे।
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संक्रांति नहीं पड़ने से मागलिक कार्य का मुहूर्त नहीं
पंडित भुपनारायण झा उर्फ लाल बाबा के अनुसार जिस चन्द्र मास में स्पष्ट सूर्य की संक्राति नहीं हो वही मलमास है। मलमास समाप्त होने के बाद सतरह जुलाई को कर्क की संक्रांति होने से सूर्य दक्षिणायन हो जाऐंगे जिससे अगले चार माह तक मागलिक कार्य का मुहूर्त नहीं पड़ेंगे। आषाढ़ शुक्ल पक्ष से कृष्ण पक्ष तक एक भी संक्रांति नहीं है। जबकि समान्यत: हर पन्द्रह दिनों पर एक संक्रांति होती है। संक्रांति नहीं पड़ने से मागलिक कार्य के मुहूर्त नहीं बनते।