ये सरकारें और ये अफसर बेचारे

राकेश दुबे@प्रतिदिन। सरकार की ठसक और साहबों की बेचारगी छतीसगढ़, और दिल्ली में दिख रही है| मध्यप्रदेश सरकार ने भी साहबों को हिदायतें याद दिलाई हैं| सरकार तो सब एक जैसी है और अफसर आला अफसर हैं| प्रतिनधि जरुर कहलाते हैं, पर जनता के लिए तो ये आला अफसर ही सरकार हैं| कलेक्टर जो कहलाते हैं, यही अफसर बड़े होकर बड़े साहब होते हैं और सरकार चलाते-चलाते “इसके या उसके” खास हो जाते है| किसी पर पार्टी तो किसी पर किसी नेता के खास होने का ठप्पा लग जाता है| इन दिनों बेचारे हो गये है|

छत्तीसगढ़ के दो आला अफसरों को इस बात के लिए कारण बताओ नोटिस मिल गया कि प्रधानमन्त्री की यात्रा के दौरान उन्होंने धूप का चश्मा लगा रखा था और 42 डिग्री तापक्रम में बंद गले का कोट नहीं पहन रखा था| वस्त्र विन्यास की ये शैली और और इसे लागू करने का कायदा ब्रिटिश परम्परा से लिया गया है, जिसमे आज भी राजा प्रजा और सरकार में विभाजन है| भारत में इस पर विचार होना था। 60 साल में नहीं किया तो अब करो| बस्तर से ही सही जहाँ प्रजा आज भी अधनंगी और नेता कपड़ों की चलती फिरती दुकान है| अफसर भी बस्तर गये तो बस तर गये की मानसिकता रख कर जाते हैं| प्रधानमंत्री जी को तो आपत्ति होना ही नहीं चाहिए उनकी वस्त्र विन्यास की शैली और उसकी उत्तमता तो किसी राजा को भी नीचा दिखा सकती है| ये अफसर तो नये-नये हैं|

पुराने अफसरों का मामला दिल्ली में गर्म है| अखिल भारतीय सेवा के दो पूर्व अफसर एक तीसरे अफसर की नियुक्ति को लेकर झगड रहे है| एक उप राज्यपाल है और दूसरा मुख्मंत्री| जिसकी नियुक्ति को लेकर झगड़ा है वे महिला अधिकारी है| इन घटनाओं के बीच भारत का संविधान है, जो कार्य पालिका के अधिकारों की माहिती तो देता है, पर कैसे, पर किताब चुप है| किताब  से अर्थ “ब्लू बुक” है जिसमें यात्रा के दौरान की और उसके बाद की व्यवस्था कैसी हो का विवरण होता है|
दिल्ली और छतीसगढ़ में आला अफसरों के दिन “अच्छे नहीं” है, मध्यप्रदेश में अच्छे बने रहे इसलिए सरकार ने कल रात यूँ ही हिदायते याद दिला दी हैं|

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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