भोपाल। फोन टेपिंग के मामले को उजागर करने वाला आईटी जानकार और पुलिस के पुराने सहयोगी प्रशांत पांडे का आरोप है कि ने यह पूरा गोरखधंधा पुलिस की मिलीभगत से ही चल रहा है। इसके जरिए बड़े पैमाने पर समाज के प्रभावशाली लोगों को ब्लैकमेल करने की कोशिश की जाती रही है।
फोन टेपिंग मामले में इंदौर बेस्ड एक अमेरिकन कंपनी सपंदन का नाम सामने लाने वाले पांडे ने शुक्रवार को बताया कि यह टेलिकॉम कंपनियों का समूचा डाटा एकत्र करके इन्हें एक जगह(कंप्यूटर में 'सेव") करके यह पूरा खेल किया गया है। इसके लिए एक कंप्यूटर प्रोग्राम भी तैयार किया गया। उन्होंने बताया कि बहुत सारी जानकारियां वे कोर्ट के संज्ञान में ला चुके हैं, इस डाटा के जरिए उक्त कंपनी पुलिस अफसरों या अन्य के द्वारा मांगे जाने पर टेलीफोन उपभोक्ता का फोन टेप करने में मदद करती थी, इसके एवज में राशि वसूली जाती थी।
यह सुविधा 'ग्राहक" को निश्चित समय के लिए एक यूजर आईडी के जरिए मुहैया कराई जाती थी। इसके बाद कंपनी यूजर आईडी को लॉक कर देती थी। पांडे ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी पुलिस के साथ बतौर आईटी एक्सपर्ट लगभग आठ साल तक काम करते समय ही लगी थी। अब उन्होंने इसका डाटा कोर्ट के सुपुर्द कर दिया है। पांडे ने कहा कि वे भी हैरान हैं कि फोन कंपनियों का डाटा इस कंपनी को आखिर कैसे मिला। यह पेचीदा प्रश्न सीबीआई जांच मेंं हल हो सकता है।
पुलिस अफसर जता रहे अनभिज्ञता व हैरानी
इस मामले के सामने आने के बाद पुलिस अफसर ऐसी किसी संभावना से इंकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह संभव नहीं है और पुलिस को इस तरह फोन टेप करने का कोई अधिकारी भी नहीं है। साइबर सेल के एडीजी अशोक दोहरे साफ कह रहे हैं कि मोबाइल फोन को टेप करने के लिए मोबाइल सर्र्विस प्रोवाइडर से ही अनुमति ली जाती है। इस सेल के एआईजी विजय खत्री ने बताया कि उन्हें इस तरह की कोई शिकायत नहीं आई है। अमूमन जब फोन टैपिंग की शिकायत आती है तो हम भी फोन कंपनी के पास ही जाएंगे। किसी भी व्यक्ति का फोेन टेप करने के अधिकार प्रदेश मुख्यालय से लेकर जिला स्तर तक के अधिकारियों को भी नहीं हैं। यदि कोई ऐसा कर रहा है तो उसका अंजाम वह खुद भुगतेगा।