चंडीगढ़। अशोक खेमका के ताजा तबादले ने भाजपा सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। कई सवाल वैसे ही हैं जैसे पिछली कांग्रेस सरकार पर उठाए जाते थे। मुख्यमंत्री के जवाब भी वैसे ही हैं पूर्व मुख्यमंत्री के होते थे लेकिन इस सवाल का जवाब अभी नहीं मिला है कि नियम कानूनों का पालन करने का दावा करने वाली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की अवहेलना क्यों की।
सर्वोच्च अदालत का कहना है कि दो साल से पहले तबादला करने पर सिविल सर्विसेज बोर्ड को कारण बताना होगा। दिलचस्प बात तो यह है कि बोर्ड का मुखिया मुख्य सचिव होता है और उसने ही तबादले का आदेश जारी किया है। अब सुनवाई कौन करे।
अशोक खेमका का भाजपा सरकार के पांच महीने के कार्यकाल में यह दूसरा तबादला है। कुल मिलाकर उनके 47 तबादले हो चुके हैं। मुख्यमंत्री मनोहरलाल का कहना है कि यह सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा है। हिसार में पत्रकारों से बातचीत में सीएम मामले में सहज नहीं दिखाई दिए। मामला भी सहज नहीं है।
समझा जा रहा है कि खेमका के कामकाज के तरीके से माफिया परेशानी में था और विभिन्न मंत्रियों और अफसरों के माध्यम से लगातार सरकार पर दबाव बनाए हुए था। खनन और परिवहन माफिया की अनदेखी करना आसान नहीं था। खेमका की सेक्रेटेरिएट की आठवीं मंजिल पर ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर प्रो. राम बिलास शर्मा के चैंबर में पीडब्ल्यूडी मंत्री राव नरवीर सिंह से गरमा गरम बहस भी हो चुकी है।
- ये हो सकती हैं वजहें
- खेमका काफी दिनों से इस ओवर लोडिंग को रोकने की मुहिम में जुटे हुए थे।
- उत्तर प्रदेश और राजस्थान से करीब 3000 ट्रक और डंपर अवैध माइनिंग करके रोजाना रेत, बजरी और पत्थर लेकर हरियाणा में आते हैं। इनमें क्षमता से तीन गुना तक मेटेरियल होता है। इनसे एक्सीडेंट होने के साथ ही सड़कें भी जल्दी टूटती हैं।
- खेमका ने ओवरलोडिंग रोकने के अपने प्रयास जारी रखे थे। एसीएस अवतार सिंह इसमें काफी हद तक खेमका को सहयोग कर रहे थे लेकिन पुलिस ने इसमें सहयोग करने से हाथ खड़े कर दिए थे। जबकि डिपार्टमेंट के पास पर्याप्त स्टाफ नहीं था।
- ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट में आने के बाद खेमका ने पहले ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में लगे ओवरसाइज व्हीकल्स को चलने से रोकने की कोशिश की। उनके फिटनेस प्रमाण-पत्र जारी करने पर रोक लगा दी थी। इससे इंडस्ट्री में बवाल मच गया।
- ट्रांसपोर्टर्स हड़ताल पर चले गए और इन लोगों ने दबाव बनाया तो सरकार ने उन्हें एक साल के लिए गैरकानूनी तरीके से चलने की छूट दे दी।
- खेमका बजट में घोषित की गई नई ट्रांसपोर्ट पॉलिसी बना रहे थे। इसमें स्टेट कैरिज परमिट स्कीम के तहत वे केवल उन्हीं रूट्स पर प्राइवेट प्लेयर्स को परमिट देना चाहते थे, जहां रोडवेज बसें चलाने को तैयार नहीं है। लेकिन रोडवेज कर्मचारी यूनियन इसका सख्त विरोध कर रही थीं।
ऐसे हुई अवहेलना
आईएएस अफसरों के तबादलों के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने टीएसआर सुब्रमण्यन विरुद्ध यूनियन ऑफ इंडिया केस में 31 अक्टूबर 2013 को कहा था कि इन अफसरों का दो साल के भीतर तबादला न किया जाए। यदि ऐसा करना जरूरी हो तो सिविल सर्विसेज बोर्ड को कारण बताया जाए। हरियाणा में इस बोर्ड के चेयरमैन मुख्य सचिव हैं और यह तबादला आदेश उन्हीं ने निकाला है।