भोपाल। प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए नेशनल इलिजिबिलिटी टेस्ट (नेट) की अनिवार्यता को लेकर उठा विवाद कम होने के बजाए बढ़ने लगा है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उच्च शिक्षा विभाग अभी तक इस मामले में कोई ठोस निर्णय नहीं ले सका है। इसके कारण एक तरफ जहां मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर के 1640 खाली पदों के लिए होने वाली भर्ती परीक्षा का कार्यक्रम अटका गया है, वहीं दूसरी ओर अतिथि विद्वानों ने शासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
असिस्टेंट प्रोफेसरशिप के लिए नेट और स्लेट की अनिवार्यता के खिलाफ प्रदेश के करीब 3600 अतिथि विद्वान बुधवार से हड़ताल पर चले गए हैं। इन अतिथि विद्वानों ने नियमितिकरण की मांग की है। इसके लिए शासन को 19 अप्रैल तक का समय दिया है। इसके बाद यह सभी अतिथि विद्वान दिल्ली में आंदोलन शुरू करेंगे।
अतिथि विद्वान महासंघ के अध्यक्ष डॉ. देवराज सिंह का कहना है कि नेट की अनिवार्यता से अन्य राज्यों के उम्मीदवारों की दावेदारी बढ़ जाएगी। खासकर छत्तीसगढ़ के उम्मीदवारों से प्रदेश के अतिथि विद्वानों को सबसे ज्यादा नुकसान होने का डर है।
डॉ. सिंह के अनुसार छत्तीसगढ़ में मूल निवासियों को असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए 40 साल तक आवेदन की छूट है, लेकिन अन्य राज्यों के आवेदक केवल 32 साल की आयु तक ही आवेदन के लिए पात्र माने जाते हैं। इसका सीधा नुकसान उन सभी अतिथि विद्वानों को होगा, जो पिछले पंद्रह सालों से लगातार अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
प्रदेश में इस समय करीब 3600 अतिथि विद्वान अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इनमें से केवल 700 से लेकर 800 के बीच ही हैं, जो नेट क्वालिफाइड हैं। बाकी के पास केवल एमफिल और पीएचडी की ही डिग्रियां हैं। संगठन ने जनभागीदारी में कार्यरत अतिथि विद्वानों के पदों का भी सृजन करने की मांग की है।