जबलपुर। न्यायालय में फर्जी घोषित हो चुके भाजपा विधायक राजेन्द्र मेश्राम को अपने बचाव में अपील करने के लिए 30 दिन का समय मिल गया है। इससे पहले उनका निर्वाचन शून्य घोषित कर दिया गया था।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सिंगरौली देवसर के भाजपा विधायक राजेन्द्र मेश्राम के खिलाफ 30 दिनों तक किसी भी तरह की कार्रवाई पर रोक लगा दी। इस अवधि का उपयोग हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट से स्टे हासिल करने के लिए किया जा सकेगा।
सोमवार को न्यायमूर्ति जीएस सोलंकी की एकलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता मेश्राम का पक्ष अधिवक्ता प्रशांत सिंह, सौरभ तिवारी व मनीष मेश्राम ने रखा। उन्होंने दलील दी कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा- 116 (बी) में दिए गए प्रावधान के तहत निर्वाचन रद्द किए जाने के बाद प्रभावित विधायक को स्टे ऑर्डर की गुहार लगाने 30 दिन का समय दिया जाना चाहिए। इस बीच उसके खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई पर रोक सुनिश्चित की जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने तर्क से सहमत होकर राहत प्रदान कर दी।
क्या था पूर्व आदेश
हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस सोलंकी की ही एकलपीठ ने 31 मार्च को देवसर के भाजपा विधायक राजेन्द्र प्रसाद मेश्राम का निर्वाचन रद्द कर दिया था। यह फैसला पूर्व मंत्री व विधानसभा चुनाव में पराजित प्रत्याशी वंशमणि प्रसाद वर्मा की चुनाव याचिका पर सुनाया गया था। चुनाव याचिकाकर्ता का पक्ष अधिवक्ता अरविन्द श्रीवास्तव, राजेश दुबे व दिनेश उपाध्याय ने रखा था। उन्होंने दलील दी थी कि देवसर के भाजपा विधायक राजेन्द्र प्रसाद मेश्राम का नामांकन-पत्र अवैध होने के बावजूद नामांकन-पत्र निरस्त करने के बदले मंजूर कर लिया गया।
इस तरह एक अयोग्य प्रत्याशी विधानसभा चुनाव में खड़ा हुआ और विजय हासिल कर ली। दरअसल, भाजपा प्रत्याशी मेश्राम ने अपने नामांकन-पत्र के साथ सत्यापित मतदाता-सूची संलग्न नहीं की। ऐसा इसलिए क्योंकि उसका नाम सिंगरौली की मतदाता सूची में तो दर्ज है, लेकिन देवसर की मतदाता सूची में नदारद है। इसके अलावा शासकीय नौकरी से दिए गए इस्तीफे की मंजूरी का दस्तावेज भी नियमानुसार नामांकन-पत्र के साथ संलग्न नहीं किया गया।