कमाल देखो: दुपहिया वाहन और यात्री बसों से खनिज संपदा का परिवहन

जबलपुर। ऐसे कमाल दूसरे राज्यों में कम ही होती हैं परंतु अपनी मध्यप्रदेश में तो आम हैं, तभी तो कहा जाता है 'एमपी अजब है, सबसे गजब है।' मामला खनिज संपदा के अवैध परिवहन का है। सरकार रिकार्ड के अनुसार जिन वाहनों से खनिज संपदा का परिवहन हुआ उनमें मोटर साइकलें एवं यात्री बसें भी हैं।

प्रदेश में खनिज के अवैध उत्खनन व परिवहन और आवंटन में अरबों रुपये के घोटाले को लेकर दायर याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से हाईकोर्ट को बताया गया कि परिवहन अधिकारी द्वारा जांच करने के बाद पाया गया कि 47 प्रकरणों में मोटर साइकिल व यात्री बस के वाहन नम्बर से खनिज का परिवहन करने का मामला प्रकाश में आया है।

खनिज विभाग ने जिलाधिकारी अनूपपुर, बालाघाट, बैतूल, छतरपुर, छिन्दवाड़ा, दमोह, ग्वालियर, होशंगाबाद, जबलपुर, कटनी, मुरैना, रीवा, सागर, सीधी व उमरिया को पत्र जारी कर जबाव मांगा है कि उन्होंने दुपहिया और बसों के नंबरों को अभिवहन पास कैसे जारी दिए। इस संबंध में अभी तक जिलाधिकारियों से जवाब प्राप्त नहीं हुआ है।

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अजय मानिकराव खानविलकर व न्यायाधीश सीवी सिरपुरकर की पीठ ने सरकार से पूछा है कि दुपहिया व यात्री वाहनों को परमिट जारी करने वालों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई है। पीठ ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह दोषियों के खिलाफ कार्रवाई कर अपनी रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष पेश करें। याचिका पर अगली सुनवाई नौ फरवरी को निर्धारित की गई है।

नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के अध्यक्ष डॉ. पीजी नाजपांडे की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि पूरे प्रदेश में खनिज का जमकर उत्खनन व परिवहन किया गया। नियमों को ताक पर रखकर हो रहे उत्खनन से सरकार को अरबों रुपये के राजस्व की हानि हुई है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया था कि वर्ष 2003 से 2008 के बीच हुए खनिज के अवैध उत्खनन व उसके परिवहन व आवंटन में की गई रायल्टी चोरी से सरकार को करीब 513 करोड़ रुपये की राजस्व हानि हुई है, लेकिन उक्त मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।

मामले को गंभीरता से लेते हुए न्यायालय ने पूर्व में सीएजी को निर्देश दिया था कि वह अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपे, जिस पर सरकार अपना जवाब पेश करे। याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने स्वयं पैरवी की।

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