फिर मोदी के हसीन सपने

राकेश दुबे@प्रतिदिन। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था को लेकर एक सपना दिखाया हैं, वो  एक खुशनुमा अहसास तो हैं, पर यह सवाल भी है कि क्या ऐसा होना मुमकिन है? प्रधानमंत्री  ने कहा कि भारत आज 2 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी है, क्या हम इसे 20 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनाने का सपना नहीं देख सकते? सपना देखने और दिखाने में किसे गुरेज़ हो सकता है | उन्होंने विकास के 'नरेंद्र मोदी सिद्धांत' पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सरकार को एक ऐसे इकोसिस्टम को बढ़ावा देना चाहिए जहां इकॉनमी का मुख्य लक्ष्य आर्थिक वृद्धि हो। और वृद्धि ऐसी, जिससे सर्वांगीण विकास को बढ़ावा मिले।

उन्होंने विकास का तात्पर्य भी स्पष्ट किया- ऐसा विकास, जिससे नौकरियों के अवसर पैदा हों। उन्होंने बताया कि वह ऐसी संपन्नता चाहते हैं, जिससे देश में सभी का भला हो, गरीब से गरीब वर्ग भी ऊपर आए। लेकिन इस लक्ष्य को पाने के लिए कठिन परिश्रम, निरंतर संकल्प और मजबूत प्रशासनिक कदमों की आवश्यकता पड़ेगी।

गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही मोदी आर्थिक अजेंडे को सबसे अहम मानते रहे हैं। अपनी उस भूमिका में उन्होंने विकास का एक मॉडल पेश किया। इसी नाम पर उन्होंने लोकसभा चुनाव में वोट मांगे और उन्हें जनता का भरपूर समर्थन मिला। केंद्र में सत्ता संभालने के बाद भी उन्होंने कई अहम फैसले किए हैं। जैसे प्लानिंग कमिशन को खत्म कर नीति आयोग बनाया, भूमि अधिग्रहण कानून और कोयला खदान कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश लाए।

मुश्किल सिर्फ एक है कि मोदी की तरह उनकी समूची पार्टी, और उनके 'राजनीतिक परिवार' की प्राथमिकता आर्थिक नहीं है। इनमें से कई नेता ऐसा मानकर चल रहे हैं कि आम चुनाव का जनादेश सबसे बढ़कर 'सांस्कृतिक मुद्दे' हल करने के लिए है। पिछले दिनों उन्होंने इस दिशा में कई पहलकदमियां लीं, जिससे समाज में तनाव फैला। यह स्थिति देसी-विदेशी निवेशकों और हर किस्म के कारोबारियों की रफ्तार सुस्त कर दे|

यह तभी होगा जब समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों को मात्र जीवन निर्वाह की दशा से निकालकर अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा से जोड़ा जाए। भारत के कुल जीडीपी का 14 फीसदी हिस्सा खेती से आता है, लेकिन देश के आधे से ज्यादा लोग अपनी जीविका खेती से ही जुटाते हैं। जाहिर है, खेती के पुनरुद्धार के बिना बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ेगी। बहरहाल, अभी लोगों को मोदी पर भरोसा है। नीयत साफ हो और लगन सच्ची, तो फिर असंभव क्या है?

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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