भोपाल। यूं तो भोपाल/इंदौर में नगरनिगम चुनाव चल रहे हैं, लेकिन पिछले 2 दिनों से यहां के नेताओं में मंथन का विषय यह नहीं है कि जीतेगा कौन, बल्कि खोज इस बात की जारी है कि बंद कमरे में शिवराज और उमा भारतीय के बीच क्या डील हुई होगी।
शुक्रवार को हुई बैठक की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि बैठक काफी गोपनीय थी। उमा भारती के साथ हुई इस चर्चा में मुख्यमंत्री के निजी स्टॉफ को भी आने की इजाजत नहीं थी। बैठक काफी देर चली, लेकिन बंद दरवाजे के पीछे हुई इस बैठक का नतीजा क्या निकला, यह कह पाना अभी मुश्किल है।
भारती और चौहान लंबे समय से एक-दूसरे के प्रतिद्वंदी रहे हैं। उमा भारती से मुख्यमंत्री की कुर्सी बाबूलाल गौर ने छीनी और बाबू लाल गौर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हरा दिया। भारती पार्टी में वापस आने की पूरी कोशिश कर ही रही थीं कि शिवराज सिंह चौहान ने उनकी सारी कोशिशों पर पानी फेर दिया। यही कारण था कि उमा भारती ने लोकसभा सांसद का चुनाव उत्तर प्रदेश के झांसी से लड़ा। हालांकि, भाजपा में शीर्ष नेतृत्व बदल जाने के बाद से पुराने प्रतिदवंदी नजदीक आते नजर आ रहे हैं।
राज्य के राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। इसमें एमपीपीईबी घोटाले के लिए एसआईटी का गठन भी माना जा रहा है। इस घोटाले में उमा भारती का नाम भी शामिल है। शायद उमा भारती डरतीं हैं कि इस बार कोई वारंट जारी हो गया तो फिर मंत्री पद चला जाएगा।
इधर यह भी माना जा रहा है कि उमा भारती मप्र की केबीनेट में अपनी पसंद के कुछ नेताओं को सेट करना चाहतीं हैं और यह तभी संभव होगा तब शिवराज और नंदकुमार से उनके रिश्ते मधुर हों तो वो अपनी ओर से शिवराज को बड़ा भाई बना रहीं हैं।
शिवराज को भी इन दिनों केन्द्र में अपने नंबर बढ़ाने के लिए उमा भारती के वोट की जरूरत है। इससे शिवराज को दोहरा फायदा होगा, पहले तो यह कि नंबर काटने का क्रम बंद हो जाएगा और दूसरा यह कि नंबर बढ़ाने में मदद मिलेगी। आडवाणी युग के खत्म होने के बाद शिवराज खुद को लगातार असुरक्षित महसूस करते आ रहे हैं।