शर्म करो सरकार: मुर्दे के कफन में भी भ्रष्टाचार

जगदीश शुक्ला/मुरैना। लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार के लिए शासन स्तर पर बजट निर्धारित है। भले ही वो बहुत न्यूनतम है, मात्र 1000 रुपए में कुछ नहीं होता परंतु सामान्यत: समाजसेवी संस्थाओं के सहयोग से शव का कफन दफन कर दिया जाता है परंतु इस मामले ने प्रमाणित कर दिया कि मुर्दे के कफन में भी भ्रष्टाचार का खेल चल रहा है, साथ ही मुरैना की शान में यह काला धब्बा कहा जाना चाहिए कि लावारिस लाशें के कफन दफन तक के लिए कोई समाजसेवी सामने नहीं आता।


बाजार में पूछा किसी ने इंसानियत मिलेगी,
सभी ने हंसकर कहा वह तो कब की बेभाव मर गई।।

किसी अनाम शायर की उपरोक्त पंक्तियां आज उस समय सार्थक होती नजर आईं जब भरी दोपहर शहर के मुख्य मार्ग पर एक शव को रिक्शे में अमानवीय तरीके से गठरी की शक्ल में सामान की तरह ढोकर ले जाया जा रहा था। मृतक कौन था, कहां का रहने बाला था, इसकी शायद किसी को जानकारी नहीं होगी लेकिन यह शायद सभी जानते थे कि वह कोई जानवर नहीं अपितु इंसान ही था।

जिस तरह रिक्शे में अध लटके झूलते हुए पुराने फटे कपड़े में लपेटकर जिस प्रकार इंसान के शव को ले जाया जा रहा था उस प्रकार तो कदाचित जानवरों के शव को भी नहीं ले जाया जाता। मानव शव की एसी दुर्गति देख जहां देखने बालों की आखें नम हो गईं वहीं मानवता भी शर्मसार जरूर होने लगी होगी।

जानकारी के अनुसार आज सुबह रेलवे पुल के पास जीआरपी थाना पुलिस को सूचना मिली कि पुल के पास एक अज्ञात वृद्ध का शव पड़ा है। सूचना पर से मौके पर पहुंची जीआरपी ने वृद्ध के शव को पोस्टमार्टम के लिये भिजवाया। बताया जाता है कि पोस्टमार्टम के उपरांत वृद्ध के शव को दफनाने के लिये पुराने फटे चादर में लपेटकर एक रिक्शे में बेअदवी के साथ लदबाकर भिजवा दिया गया। शव के ऊपर एक अदद कफन भी नहीं था। कफन के नाम पर एक पुराना फटा हुआ चादर जो शायद मृतक की जिंदगी के बाद अब मौत के सफर में भी साथ निभा रहा था।

रिक्शे में अध लटका झूलते हुए शव को देखकर लोग अफसोस के दो शब्द बयां कर मौन हो गये। शव ज्यादा झूलकर जमीन पर नहीं गिर जाये इसके लिये वृद्ध के शव को एक स्ट्रेचर पर रखकर रस्सी से बांधा गया था। वृद्ध के शव को दो निजी सफाई कर्मचारी मुन्ना एवं पप्पू रिक्शे में रखकर बेचारे वृद्ध की अंतिम यात्रा के साझेदार बनकर ले जा रहे थे। बेचारे अज्ञात वृद्ध को अपनी अंतिम यात्रा में चार कांधे तो क्या एक अदद कफन भी नसीब नहीं हो सका। शव की दुर्गति को कुछ लोग कर्मों का खेल बताकर दुनियां बहुत बड़ी होने की दुहाई देते रहे।

इस अभागे का जीवन तो निश्चित ही अभाव और गरीबी में ही बीता होगा लेकिन उसकी मौत भी इतनी भयावह और दर्दनाक होगी यह शायद ही उसने कभी सोचा होगा। आज दोपहर के समय रिक्शे में गठरी की तरह रस्सी से बंधे आधे लटकते झूलते शव को देखकर करूणा भी फूट-फूटकर रोने को मजबूर हो गई होगी,लेकिन बाकये से उन पत्थर दिल लोगों का दिल कितना पसीजा कहा नहीं जा सकता जो इस मुकाम पर भी मृतक को एक अदद कफन भी मयस्सर नहीं करा सके।

यह है मृतक का हुलिया
रेलवे पुल के पास आज मिले अज्ञात वृद्ध की उम्र लगभग 60 बर्ष की है। मृतक की दाड़ी बड़ी हुई है एवं सफे द रंग के कुर्ता पायजामा पहने हुए है। बताया जाता है कि मृतक की मौत अधिक ठण्ड के कारण हुई होगी। पोस्टमार्टम के बाद अनुमान है कि मृतक मुस्लिम वर्ग का होने की संभावना जताई जा  रही है।

शव बाहिका भी हैं शहर में
नगर में कई सामाजिक संस्थायें समाज सेवा के काम में संलग्र हैं, प्रयास एवं संपर्क किये जाने पर निजी तौर पर भी एसे हालातों में कई लोग अंत्येष्टि के लिये मदद करने को तैयार रहते हैं। इसके अलाबा नगर में जनसेवा की दृष्टि से एक शव बाहिका भी कार्यरत है। शव बाहिका से शवों को नि:शुल्क बांछित स्थान पर पहुंचाने की ब्यवस्था भी शहर में उपलब्ध है,लेकिन किसी ने भी ना तो सामाजिक संस्थाओं से बृद्ध के अंतिम संस्कार के लिये मदद मांगी और नांही किसी ने समाज सेवियों से इसके लिये सहयोग मांगा।

सामाजिक संस्थायें कर सकतीं थीं सहयोग
अज्ञात वृद्ध की मौत के मामले में शव की होने बाली दुर्गति को टाला जा सकता था। शहर में शवों को लाने ले जाने के लिये नि:शुल्क शव बाहिका की ब्यवस्था है। शहर की कई सामाजिक संस्था एवं समाज सेवी भी इस काम में सहयोग कर सकते थे,लेकिन शायद गरीब वृद्ध की मौत के मामले में इसकी जरूरत नहीं समझी गई।

गरीबों की अंत्येष्टि के लिये मिलते हैं एक हजार
रेल्वे क्षेत्र अथवा प्लेटफॉर्म के आसपास लावारिश मौत होने पर गरीब एवं लोगों की की सम्मान पूर्वक अंत्येष्टि किये जाने के लिये रेल्वे द्वारा एक हजार रूपये दिये जाने का प्रावधान है। इस संबंध में जीआरपी के प्रभारी सालिगराम से बात किये जाने पर उन्होंने भी इसकी पुष्टि की। बताया जाता है कि अंत्येष्टि के लिये मिलने बाली राशि एक हजार रूपये में से पोस्टमार्टम के लिये डिब्बा आदि का खर्चा भी काट लिया जाता है।

बोल अधिकारियों के


पुलिस करती है अज्ञात शवों की अंत्येष्टि
वृद्ध के शव की दुर्गति के मामले में आज जब जिला चिकित्सालय के सिविल सर्जन से बात की गई तो उन्होंने पहले तो मामले में अनभिज्ञता जाहिर करते हुए बताया कि अज्ञात मौतों के मामले में पोस्टमार्टम के बाद शव अंत्येष्टि के लिये पुलिस को सौंपा जाता है। पहले तो अज्ञात शवों को दफनाने के लिये रेडक्रॉस सोसाईटी से आर्थिक सहायता दिये जाने का प्रावधान था,लेकिन अब यह ब्यवस्था जारी है कि नहीं जानकारी नहीं है।
डा.सियाराम शर्मा
सिविल सर्जन जिला चिकित्सालय मुरैना

शव की शिनाख्त का करते हैं प्रयास
इस संबंध में आज जब जीआरपी थाने के प्रभारी से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि अज्ञात मृतकों की रेलवे द्वारा सम्मान पूर्वक अंत्येष्टि किये जाने के लिये एक हजार रूपये दिये जाते हैं। अज्ञात मृतकों की पहले शिनाख्त कराने के प्रयास किये जाते हैं।
सालिगराम शर्मा
प्रभारी जीआरपी थाना मुरैना


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