शैलेन्द्र गुप्ता। हिंदी पत्रकारिता का बदलता स्वरुप समाज में व्याप्त कुरूतियों को मिटाने की दृष्टि से खोखला नज़र आने लगा है एवं तमाम चुनौतियों की तरह पत्रकारिता भी व्यावसायिकरण के चलते निष्पक्ष लेखकों के लिए चुनौती भरा पथ बन गया है।
आज हम सब जब एक नए वर्ष में प्रवेश कर रहे है तो हिंदी पत्रकारिता के इस बदलते स्वरुप पर चर्चा करना लाज़मी हो जाता है अगर आज हम ख़ामोशी की चादर में मुँह छिपाते रहे तो भविष्य का समाज हमारी इस कलम को सिवाय कोसने के कुछ और नही करेगा। आज जब हर तरफ तेजी से बदलाव हो रहे है ऐसे में हिंदी पत्रकारिता पर इनका प्रभाव नहीं पड़ेगा, ऐसा सोचना बेमानी ही होगा. विगत कुछ वर्षो में व्यावसायिकता की आंधी ने इसकी मजबूत दीवारों को काफी हद तक कमजोर कर दिया है, इसके स्वरुप को काफी विकृत कर दिया है और हम सिर्फ खेद प्रकट कर सकने के सिवा कुछ भी नहीं कर सके है। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी हम सिर्फ चिंता प्रकट कर अपने उत्तरदायित्वों की इतिश्री कर लेंगे।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो आम आदमी की पीड़ा को व्यक्त करने वाली इस संस्था से आम आदमी गायब हो जायेगा और आम आदमी को न्याय दिलाने वाली यह संस्था अभिजात्य वर्ग की प्रवक्ता बन कर रह जाएगी। खबरों के चयन का आधार और प्रस्तुतीकरण जिस तरह से बदल रहा है उससे तो यही लगता है की इस विधा के पुरोधा ही इसकी लुटिया डुबोने पर आमादा हो गएँ है। हर बदलाव एक नई सोच को जन्म देता है, नया आधार तैयार करता ..परन्तु क्या ये बदलाव इस विधा की जड़ों को खोखला नहीं कर रहे है?
"अमन बेच देंगे,कफ़न बेच देंगे
जमीं बेच देंगे, गगन बेच देंगे
कलम के सिपाही अगर सो गये तो,
वतन के मसीहा,वतन बेच देंगे"
"सोच का नया संसार बनाएंगे
इक ज्योत से हज़ारों दीप जलाएंगे
न काफी हूँ में अकेला इस प्रण के लिए
इसलिए,हर कलम को अब कुदाल बनाएंगे"