रवि गुप्ता/छतरपुर। मध्यप्रदेश बुन्देलखण्ड स्थित छतरपुर जिले का छात्रवृत्ति घोटाला लाखों से करोडों में पहुंच गया है। यह घोटाला वर्ष 2013 का है। अगर इस घोटाले की सीआईडी जांच वर्ष 2005 से करवाई जाये तो दस वर्षों में यह घोटाला करोडों के पार होने की पूरी पूरी उम्मीदें जताई जा रहीं हैं।
जिला प्रशासन ने इस घोटाल की जांच करवाने के लिये अभी तक शासन को सीआईडी जांच करवाने के लिये पत्र नहीं लिखा है और जिला स्तर पर ही जांच करवाई जा रही है। जो पर्याप्त जांच का आधार नहीं है। वर्तमान घोटाले के वर्ष के पूर्व छात्रवृत्ति का वितरण आदिमजाति कल्याण विभाग द्वारा किया जाता था। जिसका मामला सामने आया था परन्तु मामले को दबा दिया गया था। जहां श्रम विभाग की योजनाओं से जारी छात्रवृत्ति का घोटाला उजागर हुआ है और श्रम अधिकारी, बैंक कैशियर, बैंक अधिकारी सहित अपनी अपनी दुम दबाकर रजाईयों में दुबकर छिपे हुये हैं तो वहीं आदिमजाति का वर्ष 2005 से वर्ष 2010 तक का छात्रवृत्ति घोटाले पर भी उंगलियां उठने लगीं हैं।
अगर आदिमजाती का भी छात्रवृत्ति घोटाला उजागर होता है तो कई डीटीओ सहित कर्मचारी भी रजाईयों में छिपे मिलेंगे। बुन्देलखण्ड का सबसे बडा छात्रवृत्ति घोटाला छतरपुर जिले में ही नहीं प्रदेश के अधिकतर जिलो में भी हुआ है जो प्रदेश का सबसे बडा अरबों और खरबों का घोटाला उजागर उस स्थिति में हो सकता है जब इसकी जांच सीआईडी स्वतंत्रता के साथ सौंपी जाये। घोटालेबाज दागियों को जेल की हवा खिलाने के लिये कडा कदम उठाना पड सकता है। तभी सरकार की निष्पक्षता बरकरार बनी रहेगी।
जिले के श्रम विभाग की योजनाओं से जारी छात्रवृत्ति में हुए घोटाले में नया खुलासा हुआ है। इस घोटाले में मंगलवार को तीन नए मामले सामने आए हैं। इन स्कूलों को छात्रवृत्ति के लिए जारी की गई राशि की चैक प्राप्त ही नहीं हुई है। इससे इस घोटाले में गड़बड़ी की राशि बढ़कर एक करोड़ 84 लाख रुपए पर पहुंच गई है। इस घोटाले का लेकर श्रम विभाग, जिले भर के स्कूलों, जनपद पंचायतों में खलबली का माहौल है। छात्रवृत्ति घोटाले में पंचायत चुनाव के बाद आगे नए खुलासे होने की उम्मीद है।
मंगलवार को छात्रवृत्ति घोटाले में जो तीन नए मामले सामने आए हैं उनमें क्रमश: हायर सेकेंडरी स्कूल हटवारा, एमएलबी स्कूल के बाद अब हायरसेेकेंडरी स्कूल क्रमांक दो में भी यहां के लिए जारी हुई चैक प्राप्त नहीं हुई है। श्रम विभाग के द्वारा हायर सेकेंडरी स्कूल क्रमांक दो के लिए 17 लाख 66 हजार रुपए की चैक जारी की गई थी। लेकिन यहां के प्राचार्य केएस अरजरिया के अनुसार यह राशि उनको प्राप्त नहीं हुई है। इस संबंध में लिखित में श्रम विभाग को सूचित कर दिया गया है।
इसी प्रकार मातगुवां संकुल में भी श्रम विभाग के द्वारा 2 चैक करीब 31 लाख रुपए के जारी किए गए हैं लेकिन मजेदार बात है कि यहां के प्राचार्य पीडी कुशवाहा कहते हैं कि उन्होंने तो यह राशि मिली है और ही उन्होंने इसके लिए कोई मांग पत्र भेजा था। इसी प्रकार श्रम विभाग से अतरार संकुल के लिए 25 लाख 50 हजार रुपए की एक चैक भेजी गई है। यहां भी मामला संदिग्ध बताया जा रहा है। इस पूरे घोटाले में श्रम विभाग की भूमिका संदिग्ध है। प्रशासन द्वारा की गई एफआईआर में यहां पदस्थ रहे लिपिक इंद्रेश बाबू कुशवाहा का नाम प्रमुख तौर पर लिया गया है।
बताया जाता है कि 20 अक्टूबर को श्रम विभाग में डीलिंग क्लर्क केपी द्विवेदी से चैक लेने आए युवक की पहचान इंद्रेश बाबू कुशवाहा ने हटवारा स्कूल के कर्मचारी के रूप में कराई थी। इसी दिन 20 अक्टूबर को इंद्रेश कुमार कुशवाहा को शासन ने गलत विकलांगता प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी प्राप्त करने पर जांच के बाद बर्खास्त कर दिया है। अब तक मामले की जांच में एक बात और सामने आई है कि दिसंबर 2013 के पहले जारी की गई थी।