ग्वालियर। एक वक्त हुआ करता था पूरे के पूरे चम्बल को डाकुओं का इलाका माना जाता था। वहां के आम नागरिक को भी भारत के किसी दूसरे शहर में सामान्य निगाहों से नहीं देखा जाता था परंतु आज हालात यह हैं कि चम्बल में शांति की फसल लहलहा रही है जबकि ग्वालियर की सड़कें खून से रंगी हुई हैं।
पड़ौसी जिलों की तुलना में ग्वालियर में पुलिस की ताकत पांच गुना ज्यादा कही जा सकती है। मैंन पाॅवर, फायर पाॅवर और संसाधनों से लैस होने के बाद भी जिले में अपराध बढ़ रहे हैं। अपराधों का गढ़ कहीं जाने वाली चंबल से ग्वालियर आगे निकल रहा है। जिससे शहर सहमा हुआ है। गुंडे बेकसूर लोगों के साथ पुलिसकर्मियों की जान लेने से भी नहीं चूक रहे हैं। हर पांचवे दिन हत्या और 36 घंटे में जान लेने की कोशिश सामने आ रही है।
पुलिस की उपस्थिति वसूली तक सीमित है, बीट सिस्टम शहर में लागू होगा, लेकिन जिले के अन्य कस्बों में लागू नहीं हो पाया है। अवैध रूप से बिकने वाला नशा स्मैक, मेडीकलों पर बिकने वाली नशीली गोलियां, बेरोजगारी, अवैध हथियारों की खरीद विक्री तथा पुलिस का फैलाव जनता में कम होना क्षेत्र को अपराधों में अब्बल बनाये हुये है।
आईजी, एसएसपी, चार एएसपी, 18 सीएसपी, डीएसपी, एडीओपी और टीआई तथा लाइन स्टाफ करीब ढाई हजार का कुल फोर्स, क्राइमब्रांच का बल, सीसीटीबी कैमरे तथा फायर पाॅवर होने के बाद भी अपराधी खुलेआम वारदात कर निकल जाते हैं। ग्वालियर रेंज में 161 मर्डर, 223 कातिलाना हमला, 171 लूट डकैती के मामले अभी तक कायम हो चुके हैं।
पड़ौसी जिलों से बदमाश आकर बिना सूचना दिये, किसी के भी मकान में रहकर बारदात कर भाग जाते हैं, उनकी मौजूदगी की जानकारी बारदात के बाद मिलती है। लोगों का कहना है कि पुलिस अधिकारियों को पूरे सिस्टम और तंत्र पर तथा छोटी-छोटी सूचनाओं पर स्वयं संज्ञान लेकर कार्य करने की जरूरत है तभी अपराधों पर नियंत्रण संभव है। पुलिस की उपस्थिति आम लोगों के साथ आम चौराहों पर गलियों में रहे तभी अपराधियों में पुलिस का डर पैंदा होगा।