माध्यम में भर्ती घोटाला, कांग्रेस ने की हाईलेवल इन्वेस्टीगेशन की मांग

भोपाल। इन दिनों व्यापम घोटाला खूब चर्चा में है। रोज नई नई परतें खुल रही हैं और सीबीआई जाँच पर हाईकोर्ट में बहस अंतिम दौर में है लेकिन इससे भी इतर एक भर्ती घोटाला मुख्यमंत्री के सरंक्षण के विभाग जनसंपर्क की इकाई मध्य प्रदेश माध्यम में हुई लगभग 150-200 नियुक्तियां का मामला आज भी संदूक में बंद है।

आरोप हैं कि यदि गहन जांच पड़ताल हो तो जनसंपर्क के अपर प्रबंध संचालक सुरेश तिवारी की मनमानी साफ़—साफ़ नजर आएगी जिनके द्वारा ना केवल अवैध नियुक्तियां हुई बल्कि भारी पैमाने पर पैसे के लेन-देन के आरोप भी उन पर लगे हैं। ये आरोप लगे हैं मुख्यमंत्री को भेजी एक लिखित शिकायत में। जिसे भ्रष्टाचार निवारण समिति द्वारा सम्बंधित साक्ष्य के साथ मुख्यमंत्री को भेजा गया है।

उल्लेखनीय है कि जिन पदों पर नियुक्तियां हुई उनके सम्बन्ध में वित्त विभाग से सहमति नहीं ली गयी जबकि नवीन संरचना के लिए जनसंपर्क विभाग और वित्त विभाग दोनों का अनुमोदन लिया जाना जरुरी माना जाता है। नियमतः तो रिक्त पदों का पूर्ण विवरण रोजगार निर्माण में प्रकाशित होना चाहिए था जबकि ऐसा किया जाना जरुरी नहीं समझा गया।

खानापूर्ति के लिए आवेदन पत्र प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि के एक दिन पहले मात्र माध्यम की वेबसाईट पर प्रकाशित किया गया। उक्त संक्षिप्त विज्ञापन का भी व्यापक प्रचार प्रसार नहीं किया गया। जाहिर सी बात है इच्छुक बेरोजगार आवेदन कर ही नहीं पाए। हैरानी की बात यह भी है कि उक्त तथा कथित विज्ञापन पर ना तो क्रमांक अंकित है ना दिनांक।

आरक्षण के नियमों की उडी धज्जियाँ
इन रिक्त पदों की भर्ती में आरक्षण के नियमों का भी पालन नहीं किया गया। महिला, विकलांग और भूतपूर्व सैनिकों के लिए तो एक भी पद आरक्षित नहीं किया गया, विदित हो कि  मध्यप्रदेश शासन के नियमानुसार सीधी भर्ती के पदों में निश्चित प्रतिशत में आरक्षण अनिवार्य हैं।

बिना कारण आवेदन हुए निरस्त
यदि पहले से ही तय को कि नौकरी किसे मिलनी है तो जाहिर सी बात है उस पद के लिए आए आवेदन पत्र रद्दी की टोकरी में ही जाएंगे। यही वजह है कि प्राप्त आवेदन पत्रों को मनमाने तरीके से स्वीकारध्अस्वीकार कर दिया  गया। निर्धारित आर्हता पूरी करने वाले आवेदकों के आवेदन बिना किसी कारण के निरस्त कर दिए गए ताकि  चहेते पूर्व निर्धारित उम्मीदवारो को नियुक्ति दी जा सके।

भर्ती प्रक्रिया की जमकर हुई अनदेखी
विज्ञापन में दर्शाए गए रिक्त पदों में से किसी भी पद के लिए भर्ती प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। किसी भी पद के लिए न तो लिखित परीक्षा ली गई न ही कोई एप्टीट्यूट टेस्ट लिया गया न ही प्रायोगिक कार्य कराया गया। साक्षात्कार में भी केवल नामए पताए योग्यता पूछने भर की औपचारिकता की गई। एक.एकए दो.दो मिनट में उम्मीदवारों को चलता कर दिया गया। अंतिम परिणाम अपनी मनमर्जी से माध्यम के अधिकारियो द्वारा तैयार किया गया।

जिसे चाहा रख लिया, जिसे चाहा हटा दिया
नियुक्तियों में पक्षपात और भ्रष्टाचार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि भाजपा के आला नेता  की सिफारिश पर रंजना चितले को नियुक्ति दी गई , जनसंपर्क में संबद्ध ऑटो के मालिकए अपर प्रबंध संचालक के निवास पर काम करने वाले जनसंपर्क के अंशकालिक श्रमिकए अपर सचिव के निवास पर काम करने वाले और सचिवध्आयुक्त के निवास पर काम करने वाले अंशकालिक श्रमिक शामिल हैं। आरोप के मुताबिक रिकॉर्ड से इसकी पुष्टि की जा सकती हैं। गड़बड़ियों का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आयुक्त के निवास पर काम करने वाले एक कर्मचारी को पहले ज्वाइन करवाया गया परंतु बाद में कतिपय दबाव के कारण इस्तीफा दिला दिया गया।

भ्रष्टाचार निवारण समिति ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से की है और आरोप लगाये हैं कि इन पदों की भर्ती में बड़े पैमाने पर पैसा लिया गया हैं और भ्रष्टाचार किया गया! आरोप यह भी हैं कि यह सब अपर प्रबंध संचालक सुरेश तिवारी के नेतृत्व में किया गया हैं। व्यापम घोटाले में तो पूर्व जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा का नाम आ रहा हैं लेकिन जो आरोपित घोटाले मुख्यमंत्री के संरक्षण के विभाग  में हुए उस पर ध्यान नहीं दिया जाना समझ से परे है । इस सम्बन्ध में चर्चा करने पर विभाग के आला अधिकारी चुप्पी बांध लेते हैं! ऐसी परिस्थिति में भ्रष्टाचार के सन्दर्भ में मुख्यमंत्री की जीरो टालरेंस वाली उद्घोषणा एक फूहड़ मजाक सा प्रतीत होता है। सवाल यह उठता है कि क्या इन प्रशासनिक अधिकारियों की कारगुजारियां मुख्यमंत्री तक नहीं पहुँच पाती, अगर नहीं पहुच पाती है तो यह भी एक खतरनाक संकेत हैए मुख्यमंत्री का यह भोलापन भ्रष्टाचारियों की फसल उगाने में खाद और पानी का काम करेगा।

दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि क्या मुख्यमंत्री इन तमाम हकीकतों से वाकिफ हैं। अगर हांं तो क्या यह मान लिया जाए कि उनका नौकरशाहों पर कोई नियंत्रण नहीं, यह दूसरी स्तिथि और भी खतरनाक है जहां राज्य के नेतृत्त्वकर्ता की भूमिका पर ही कई सवाल खड़े हो जाते हैं। भ्रष्टाचार ऐसा जहरीला पेड़ है जो धीरे.धीरे आकाश चूमने को आतुर हो उठता है और स्वयमेव जगजाहिर हो जाता है। सरकार और मुख्यमंत्री का चेहरा निखारने वाले विभाग मध्यप्रदेश माध्यम ए जनसंपर्क में लगातार हो रही गड़बड़ियां भी जिस दिन सामने आएंगी, कई सफ़ेद कालरों पर कालिख पुती नजर आएगी।

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