राकेश दुबे@प्रतिदिन। अपने को सबसे अलग कहनेवाली भाजपा सबसे अलग दिखने भी लगी है| साफ समझ आ रहा है कि भाजपा का चमचमाता पोस्टर जिस दीवार पर लगा है, उसमें भारी दरारें हैं| इन दरारों में मौजूद बूढ़े बरगदों की जड़ें साफ कर युवा पेड़ों के साथ कुछ कैक्टस प्रजाति के पौधे भी, अपने को लोक लुभावन साबित करने के लिए, भाजपा के वर्तमान केन्द्रीय नेतृत्व ने आयात किये है| संघ को अपने अनुशासन गरिमा बनाये रखने के लिए कुछ ऐसे आदेश भी देना पड़े है, जो संघ की प्रकृति और स्थापना के विपरीत हैं|
कुछ उदाहरण जैसे संघ का उद्देश्य “व्यक्ति से बड़ा दल और दल से बड़ा देश ”| सर संघचालक जी ने इसे ही ध्यान में रखकर बंगलुरु में कहा की हमारा काम “नमो-नमो” करना नहीं होना चाहिए| दूसरे तीसरे दिन इसका घुमा फिराकर खंडन| शायद संघ की परम्परा नहीं है| पूर्व में हुए विधानसभा चुनाव और 2014 के इस लोकसभा चुनाव के पूर्व संघ का कभी प्रत्याशी चयन के मामले में ऐसी भूमिका नहीं दिखी| न कभी संघ के कार्यालय मान-मनोवल्ल के केंद्र बने| अब कोई भी नाराज तो संघ की भूमिका पंचायती की कर दी जाती है| इसे कोई भी ठीक नहीं कह रहा है|
इन्ही सबका प्रतिफल है| गुजरात में हरेन पाठक और मध्यप्रदेश में कैलाश जोशी का सफाई से सफाया| तरकीबें थोड़ी अलग-अलग| जसवंत सिंह, लालजी टंडन, डॉ मुरली मनोहर जोशी के साथ भी ऐसा ही हुआ| प्रकार अलग- अलग| भाजपा में नये युग के कर्णधारों ने इतिहास के पन्ने पलटना तो दूर, इतिहास की ओर अपने अहं के कारण देखा तक नहीं, जिससे “अपना दल “ जैसे छोटे दल भी वाराणसी में चेतावनी दे रहे हैं कि” भाजपा दो दिन में समझौता कर ले, नहीं तो मोदी के खिलाफ उम्मीदवार|” आडवाणी जी, को भोपाल सीट का न्यौता देने वालों ने कभी यह नहीं सोचा की पहले लोकसभा और फिर पूरा मध्यप्रदेश जितानेवाली उमा भारती में कौन से कांटे लगे हैं, जो उन्हें चरखारी और अब झाँसी में झोंक दिया है|
आज कर्नाटक में प्रमोद मुत्तलिक का बनवास समाप्त हुआ है| इतने संघर्ष के बाद भाजपा में उन्हें जगह दी जा रही है, तो मनोहर पर्रीकर दुखी हो गये हैं| लगता है भाजपा में केन्द्रीय नेतृत्व का अर्थ राज्यों के मुख्यमंत्री और उनके पक्ष में जानेवले निर्णय ही रह गये हैं|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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