मध्यप्रदेश की अध्यक्षता भुला नहीं पा रहे हैं प्रभात झा

भोपाल। राजनीति में शुचिता और मोह माया से दूर रहने की सीख देने वाले माननीय प्रभात झा खुद मोहमाया के भंवर जाल में बुरी तरह फंसे हुए हैं। वो मध्यप्रदेश भाजपा की अध्यक्षता वाले दिनों को भूले नहीं भुला पा रहे हैं।

शायद वो प्रभात झा की अब तक के राजनैतिक जीवन के सबसे सुनहरे दिन थे। चारों ओर चाटुकारों की फौज और पॉवर के वो दिन कोई कैसे भुला सकता है। उन दिनों में प्रभात झा ने जो चाहा सो किया। क्या क्या किया और क्या क्या हुआ यदि लिखा जाए तो श्री प्रभात झा कथा सप्ताह का आयोजन करना पड़ जाए परंतु बस इतना काफी है कि खुली मनमानी हुई। सही को गलत और गलत को सही साबित किया गया।

सरकार के प्रेशर में मीडिया ने भी खूब हां में हां मिलाई, लेकिन कुछ चाटुकारों के अतिरेक ने उन्हें धड़ाम से धूल चटा दी। इन चाटुकारों ने कब उन्हें सीएम की कुर्सी कमा दावेदार बना दिया पता ही नहीं चला। मीडिया ने भी रह रह कर इस मामले में घी डाला और एक दिन ऐसा आया कि सीएम की दावेदारी के लिए तैयार हो रहे प्रभात झा मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी नहीं रहे।

भला हो सुरेश सोनी जी का जो उन्होंने प्रभात झा को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनवा दिया, नहीं तो निलंबन कितना लम्बा होता... पता नहीं। अब उन्हें दिल्ली का प्रभारी बना दिया गया है। अर्थ यह कि मध्यप्रदेश से बेदखल कर दिया गया है। ट्रांसफर हो गया है, बावजूद इसके प्रभात झा को मध्यप्रदेश की याद सता रही है।

31 जनवरी के बाद आज 12 फरवरी को उन्होने फेसबुक पर दो फोटो अपलोड किए हैं। पहले फोटो में हैं पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी, ठीक वैसे ही जैसे कांग्रेसी महात्मा गांधी को अपलोड करते हैं और दूसरा है मध्यप्रदेश में हुए 'सविनय आग्रह उपवास' का। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने केन्द्र सरकार के खिलाफ इस उपवास का एलान किया था परंतु एन उपवास के दिन मनमोहन सिंह से फोन पर बात करके उपवास आयोजन रद्द कर दिया गया। गाड़ दिए गए तमाम तंबू खराब हो गए।

अब इस फोटो को अपलोड करके प्रभात झा क्या संदेश देना चाहते हैं ? क्या यह बताना चाहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान किसान हितों का ढोंग बहुत पहले से करते आ रहे हैं या उन्हें अपने पुराने दिनों की पॉवर याद आ रही है, यह तो प्रभात जी ही जानें परंतु आधी रात को अपलोड किए गए फोटो का कोई ना कोई अर्थ जरूर होना चाहिए।

निकालिए निकालिए सब अपने अपने अर्थ निकाल लीजिए।

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