58 साल बाद आ रहा है त्रि-महासंयोग

भोपाल। शिव उपासना का महापर्व महाशिवरात्रि इस साल विशेष संयोग लेकर आ रहा है। पं धर्मेंद्र शस्त्री ने बताया कि 58 साल बाद प्रदोष युक्त चतुर्दशी और श्रवण नक्षत्र का यह महासंयोग रहेगा। 1956 में महाशिवरात्रि पर ऐसा महासंयोग बना था।
इस दिन चारों प्रहर की पूजा में चतुर्दशी तिथि रहेगी। यह सभी संयोग महापर्व को और खास बना रहे है। शिवरात्रि की रात का विशेष महत्व होने की वजह से ही शिवालयों में रात के समय शिवजी की विशेष पूजा- अर्चना होगी।

शिवरात्रि है तमोगुणमयी रात्रि

भगवान शंकर संहारकर्ता होने के कारण तमोगुण के स्वामी है। रात्रि भी जीवों की चेतना छीन लेती है और जीव निदा देवी की गोद में सोने चला जाता है, इसलिए रात को तमोगुणमयी कहा गया है। यही कारण है कि तमोगुण के स्वामी भगवान शंकर की पूजा रात्रि में विशेष फलदायी मानी जाती है। शिवपुराण के अनुसार सृष्टि के निर्माण के समय महाशिवरात्रि की मध्यरात्रि में शिव का रूद्र रूप में प्राकट्य हुआ था। ’योतिष की दृष्टि से भी महाशिवरात्रि का महत्व है। भगवान शिव के सिर पर चन्द्रमा विराजमान रहता है। चन्द्रमा को मन का कारक कहा गया है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात चन्द्रमा की शक्ति लगभग पूरी तरह क्षीण हो जाती है। जिससे व्यक्ति के मन पर तामसिक शक्तियां अधिकार करने लगती है। ऐसे में भगवान शंकर

की पूजा से मानसिक बल प्राप्त होता है, जिससे आसुरी और तामसिक शक्तियों के कुप्रभाव से बचा जा सकता है। महाशिवरात्रि पर चार प्रहर की पूजा का विशेष महत्व है। यह पूजा चतुर्दशी तिथि एवं रात्रि में ही होगी। हर माह कृष्णपक्ष में मास शिवरात्रि का पर्व आता है। फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर महाशिवरात्रि का पर्व मनाते है। ईशान संहिता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन अर्द्धरात्रि में ज्योतिलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी शंकर-पार्वती के विवाह का दिन भी माना जाता है। इस बार विशेष संयोग और दो दिन बाद शनिचारी अमावस्या भी रहेगी।
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