उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की किस्मत पता नहीं सुधर भी पाएगी या नहीं। आदिवासी के नाम पर प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी हथियाने वाले कांतिलाल कुछ नहीं कर पाए, अब पिछड़ा वर्ग के नाम पर अरुण यादव इस सीट की तिकड़म भिड़ा रहे हैं। सवाल यह है कि बात योग्यता की क्यों नहीं होती।
राजनैतिक दलों में रिजर्वेशन्स का लाभ पहले भी मिलता रहा है परंतु यह प्रक्रिया शुरू होती है योग्यता का पैमाना नाम लेेने के बाद, लेकिन कांग्रेस में योग्यता पर विचार ही नहीं किया जा रहा। जाति और वर्ग को आधार बनाकर पदों की खींचतान चल रही है और नतीजा विधानसभा चुनाव में सभी देख चुके हैं।
क्यों नहीं चला आदिवासी कार्ड
कांग्रेस हाईकमान को यह समझ लेना चाहिए कि जनता बेवकूफ नहीं है और ना ही मध्यप्रदेश के आदिवासी। जिस कांतिलाल भूरिया को उन्होंने आदिवासी नेता के नाम पर प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भेजा था, उसके पास अपना कोई नेतृत्व का इतिहास या अनुभव नहीं रहा है। उसने कभी किसी प्रदेश स्तरीय आदिवासी आंदोलन का नेतृत्व नहीं किया। उसने कभी आदिवासी हित में राजधानी की जड़ें हिलादेने वाला कोई कार्यक्रम नहीं किया। अपने पूरे राजनैतिक जीवन में एक भी बार वो अपने आदिवासी समर्थन का शक्तिप्रदर्शन नहीं कर पाए।
जहां से वो चुनाव जीतकर आते हैं वहां जो हारता है वो भी आदिवासी ही होता है। कभी किसी सामान्य या दमदार आदिवासी नेता से सामना करने की हिम्मत नहीं कर पाए कांतिलाल भूरिया।
जुगाड़ की राजनीति के लिए पूरे मध्यप्रदेश में फेमस रहे हैं। पत्रकारों को लिफाफे दे देकर खबरें छपवाया करते थे और वही कतरनें हाईकमान के सामने पेश कर दिया करते थे बस। यदि कोई योग्य आदिवासी कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष होता तो लाभ निश्चित रूप से मिलता।
क्या गारंटी है पिछड़ावर्ग कार्ड चलेगा
जब मध्यप्रदेश में आदिवासी कार्ड नहीं चला तो क्या गारंटी है कि पिछड़ा वर्ग कार्ड चल जाएगा। इस कार्ड पर विचार कर लेने से पहले कांग्रेस हाईकमान को यह समझ लेना चाहिए कि मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार इसलिए नहीं बनी थी कि उसे उमा भारती लीड कर रहीं थीं, बल्कि लोग दिग्विजय सिंह से त्रस्त हो गए थे, इसलिए भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया गया। यदि उमा की जगह कोई और भी होता तो भी परिणाम वही होते जो थे। क्योंकि वो चुनाव उमा भारती ने जीता नहीं था, बल्कि दिग्विजय सिंह को कर्मचारियों ने हराया था। यदि उमा भारती या पिछड़ा वर्ग कार्ड में इतना ही दम होता तो उमा की भाजश का हाल वो ना होता जो हुआ है।
अब बात करते हैं बाबूलाल गौर की तो उमा के इस्तीफे के बाद निकट में ऐसा कोई वरिष्ठ नेता नहीं था जिसे कुछ समय के लिए सीएम बनाया जा सके। बाबूलाल गौर भाजपा के विश्वासपात्र नेता रहे हैं इसलिए यह जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी गई थी जो उन्होंने निभाई भी। यह सब उन्हें इसलिए नहीं मिला क्योंकि वो पिछड़ावर्ग के नेता हैं बल्कि वो इसलिए स्थापित हैं क्योंकि वो योग्य एवं लोकप्रिय नेता हैं।
शिवराज सिंह चौहान के बारे में तो मध्यप्रदेश की ज्यादातर जनता यह भी नहीं जानती कि वो पिछड़ा वर्ग से आते हैं। नाम के पीछे चौहान लगा है इसलिए लोग उन्हें ठाकुर मानते हैं और उनकी लोकप्रियता में 20 प्रतिशत का इजाफा तो केवल इसलिए हो गया था क्योंकि मध्यप्रदेश की जनता ने कभी किसी ठाकुर मुख्यमंत्री को इतना विनम्र, शालीन और ग्राउंड टू अर्थ नहीं देखा था। पिछड़ा वर्ग कार्ड का लाभ उन्हें ना पहले कभी मिला था और ना ही इस बार मिला है।
अत: हे कांग्रेस के हाईकमान, कम से कम एक अदद योग्य व्यक्ति का चुनाव मध्यप्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए करो ताकि कम से कम विपक्ष के नाम पर कोई को ठीक ठाक नाम बना रहे, अन्यथा बेलगाम सत्ता कब भटक जाएगी पता ही नहीं चलेगा। अगले 5 साल में केवल कांग्रेस ही खतम नहीं होगी बल्कि मध्यप्रदेश भी खतरे में आ जाएगा।