पढ़िए दैनिक भास्कर में छपी मुरलीधर पाटीदार की पेड न्यूज!

भोपाल। सब जानते ही हैं कि मुधरलीधर पाटीदार और दैनिक भास्कर के एक पत्रकार की मित्रता कितनी मजबूत है। इसी मित्रता के चलते पाटीदार संविदा शिक्षकों के सर्वमान्य नेता बने और बने भी रहे। अभी हाल में एक आर्टीकल प्रकाशित किया गया है। हम इसे पेड आर्टीकल आरोपित करते हैं, इसके पीछे कारण क्या है इसकी चर्चा बाद में करेंगे, पहले पढ़िए यह आर्टीकल:-

रिश्तेदारों और दोस्तों ने जुटाया चुनावी खर्च और ये MLA बन गए!

भाजपा के विजयी हुए विधायकों में से एक मुरलीधर पाटीदार ऐसे हैं, जिन्हें चुनाव के दौरान नामांकन भरने के पहले नौकरी से इस्तीफा देना था।

नियमों के मुताबिक उन्हें एक महीने का वेतन भी जमा करना था। उनके साथी कर्मचारी गोविंद प्रसाद जिंदल ने उनकी आर्थिक मदद की तब कहीं जाकर वे वेतन के 31 हजार रुपए जमा कर इस्तीफा दे सके।

पाटीदार आगर जिले के सुसनेर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार थे। वे 28 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीते हैं। पाटीदार ने कहा कि उनके पास जमा पूंजी नहीं थी। हर महीने मिलने वाले वेतन से ही परिवार का गुजारा करते थे। पार्टी से मिले थोड़े से फंड और रिश्तेदारों व परिचितों द्वारा की गई मदद से सात लाख रुपए खर्च कर चुनाव लड़े।

सिर्फ चार जोड़ी पेंट-शर्ट थे

पाटीदार ने बताया कि उन्होंने कई सालों तक सिर्फ चार जोड़ी पेंट- शर्ट पहनकर ही काम चलाया। चार दिन तक एक पेंट व शर्ट पहने रहते थे। जीतने के बाद उनके कुछ साथियों ने खादी का नया कुर्ता-पायजामा व एक जैकेट गिफ्ट दी। जिसे पहनकर वे मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए।

अध्यापकों के संबंध में सीएम से की चर्चा

पाटीदार ने बताया कि उन्होंने सीएम से अध्यापकों की दो प्रमुख मांगों शिक्षा विभाग में संविलियन और समान काम समान वेतन के बारे में चर्चा की है। पाटीदार ने कहा कि समान काम समान वेतन की मांग तो चुनाव के पहले ही पूरी कर दी गई थी। इसमें आई विसंगति के संबंध में सीएम से चर्चा की गई है। जिसे समय रहते दूर कर दिया जाएगा।

दस लाख कर्मचारियों के हक में आवाज उठाऊंगा

पाटीदार ने कहा कि वे कर्मचारी नेता की हैसियत से प्रदेश के दस लाख कर्मचारियों के हक में आवाज उठाते रहेंगे। वे सरकार और कर्मचारियों के बीच कड़ी बनकर काम करेंगे। इसके पहले सभी कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों से मुलाकात करेंगे।

  • सवाल यह है कि

आर्टीकल की शुरूआत में उनकी फकीरी का किस्सा सुनाया गया है। सवाल यह उठता है कि जब इतने ही फकीर थे तो चुनाव लड़ने की जरूरत ही क्या थी।
क्या संविदा शिक्षकों के संगठनों ने जिसके वो अध्यक्ष थे, इसकी मांग की थी।
क्या सुसनेर की जनता ने मांग की थी कि वो चुनाव लड़ें।
क्या शिवराज सिंह चौहान उन्हें मनाने के लिए उनके घर आए थे।

  • आरोप यह है

मुरलीधर पाटीदार की राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं हिलौरे ले रहीं थीं। उन्होंने एक अदद विधानसभा टिकिट के लिए संविदा शिक्षकों के आंदोलन को उस मुकाम पर लाकर खत्म कर दिया जबकि सरकार नतमस्तक होने ही वाली थी। मध्यप्रदेश के ढाई लाख संविदा शिक्षकों के अधिकारों को गिरवी रख दिया। एक अदद टिकिट के लिए पूरा का पूरा आंदोलन ही बेच दिया। एक गुप्त समझौते के तहत टिकिट हासिल किया और आंदोलन को ना केवल खत्म किया लेकिन दूसरी बार उठने भी नहीं दिया। एक कांग्रेसी मानसिकता वाला कर्मचारी नेता बिना भाजपा की सदस्यता लिए अचानक विधानसभा का प्रत्याशी हो गया। बिना बिग डील के यह कैसे संभव हो सकता था।

  • पेड आर्टीकल क्यों

क्योंकि इस आर्टीकल की कोई जरूरत ही नहीं थी। इसकी शुरूआत में मुरलीधर पाटीदार को संत और फकीर कर्मचारी नेता बताया गया है। लिखा गया है कि उनके पास सरकार को जमा करने के लिए 31 हजार रुपए नहीं थे, जबकि टिकिट मिलने के कुछ ही दिनों पहले पाटीदार सपरिवार गोवा घूमकर आए थे। अब गोवा कोई धार्मिक स्थल तो है नहीं जो तीर्थयात्रा का प्रयोजन मान लिया जाए। जब इस्तीफे के साथ एक महीने का वेतन जमा कराने को पैसे नहीं थे तो गोवा टूर के पैसे किसने खर्च किए, यह भी बताया जाना चाहिए था।

आर्टीकल के अंत में मुरलीधर पाटीदार को केवल संविदा शिक्षकों का ही नहीं बल्कि पूरे मध्यप्रदेश के 10 लाख कर्मचारियों का नेता बनाने का प्रयास किया गया है। बड़ी ही चतुराई के साथ अपने ही समाज से गद्दारी करने वाले नेता को प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया गया है। तो क्यों ना कहा जाए इसे पेड आर्टीकल।

ये रही दैनिक भास्कर के आर्टीकल की लिंक
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