भोपाल। विधानसभा चुनाव के ऐनवक्त पर मध्यप्रदेश महालेखाकार(एजी) की रिपोर्ट से राजनीतिक गर्मा उठी है। रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने अपने मंत्रियों पर कृपादृष्टि बनाते हुए उनके वेतन के अलावा अन्य जरियों से होने वाली कमाई का भी टैक्स चुकता किया है।
अगले महीने यानी 25 नवंबर को मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है, ऐसे में मप्र महालेखाकार(एजी) की एक रिपोर्ट से राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गई हैं। सूत्रों की मानें, तो यह एक घोटाला है। आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे ने सूचना के अधिकार(आरटीआई) के तहत जानकारी मांगी थी। इससे पता चला कि सरकार ने अपने मंत्रियों की सेलरी पर लगने वाले टैक्ट के अलावा उनके दूसरे अन्य स्रोतों से होने वाली आय का भी टैक्स जमा किया है। महालेखाकार के ऑडिट में इसका खुलासा हुआ।
मध्यप्रदेश के महालेखाकार (एजी) ने सरकार से जवाब तलब करते हुए अनुशंसा की है कि मंत्रियों से राशि वसूल होनी चाहिए। वित्तीय वर्ष 2012-13 की रिपोर्ट में महालेखाकार ने सरकार से जवाब तलब किया है कि जब सभी मंत्रियों की आय एक है, तो इनकम टैक्स अलग-अलग क्यों जमा हुआ है? सरकार को इस मामले में जांच करनी चाहिए। नियमानुसार सरकार मंत्रियों के केवल वेतन की आय पर इनकम टैक्स जमा कर सकती है, लेकिन मंत्रियों के अन्य आय पर भी इनकम टैक्स जमा करना गंभीर है। महालेखाकार की रिपोर्ट में मंत्री अजय विश्नोई और रामकृष्ण कुसमरिया से 3 करोड़ 24 लाख रुपए की रिकवरी की सिफारिश की गई है।
मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान में भी गड़बड़ी
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, महालेखाकार की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि वर्ष 2011-12 और 2012-13 में मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान की करीब 76 करोड़ की राशि खर्च हुई, लेकिन किसी भी जिले के कलेक्टर ने हितग्राहियों से प्राप्त रसीद और उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा नहीं किया। इससे राशि के दुरुपयोग की शंका भी होती है।
यह भी खुलासा हुआ कि एक ही व्यक्ति को दो बार स्वेच्छानुदान राशि दे दी गई, जबकि नियमानुसार एक व्यक्ति को वर्ष में एक बार ही राशि स्वीकृत हो सकती है। शाजापुर जिले के हरिओम पाटीदार को वर्ष 2012-13 में एक लाख रुपए दिए गए। इसी वर्ष इन्हें 50 हजार रुपए और दे दिए गए।
रिपोर्ट के मुताबिक विभाग ने 2 करोड़ रुपए के खर्चे के वाउचर ऑडिट के सामने पेश नहीं किए। 2005 में करीब सवा करोड़ के कंप्यूटर और हार्डवेयर की खरीदी में वित्तीय अनियमितता भी सामने आई। इसी प्रकार 60 करोड़ रुपए मध्यप्रदेश वित्त विकास निगम को गलत दिए गए। आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे ने इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की है।