इंदौर 1 में दिग्गजों की तिकड़म

इंदौर मालवा जोन-1 में भाजपा-कांग्रेस दोनों ही अपनी परफॉर्मेंस बेहतर करना चाहते हैं। इंदौर व देवास जिले में कांग्रेस और धार, झाबुआ, आलीराजपुर में भाजपा चिंतित है। इस संकट के बावजूद दोनों ही दलों के दिग्गज नेता परिवार-मोह में फंसे हुए हैं।

मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, सांसद सुमित्रा महाजन, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया, सांसद सज्जन वर्मा और विधायक मालिनी गौड़ अपने बच्चों के लिए टिकट चाहते हैं। दो पुराने नेता विक्रम वर्मा और तुकोजीराव पंवार पत्नी को चुनाव लड़वाने पर आमादा हैं तो आदिवासी नेता मंत्री रंजना बघेल की कोशिश है कि उनके पति मुकामसिंह को फिर टिकट मिले।

कभी अविभाजित मप्र की 320 सीटों के टिकटों पर मुहर लगाने वाले इंदौर के महापौर कृष्णमुरारी मोघे अपने टिकट की आस में दिल्ली-भोपाल दौड़ लगा रहे हैं। इस बीच भाजपा के कुछ विधायक क्षेत्र बदलने के लिए नेताओं को साध रहे हैं।

मालवा जोन-1 में कुछ जगह दल-बदल की स्थितियां भी बन रही हैं। झाबुआ-धार की दो आदिवासी सीटों पर कांग्रेस के दो मजबूत दावेदार टूटने की कगार पर हैं। कांतिलाल भूरिया के बेटे ने एक दिन पहले ही कहा है कि मुझे टिकट नहीं चाहिए। देखना यह है कि वे वाकई दावेदारी से हट गए हैं या ये भी टिकट पाने का ही एक तरीका है।

पिछले चुनाव में मालवा की इस जोन में मिले-जुले परिणाम आए थे। 26 सीटों में से 14 पर भाजपा जीती और 12 सीटें कांग्रेस की झोली में गईं। इंदौर व देवास जिले की कुल 14 में से भाजपा के पास 11 सीटें हैं। भाजपा को ज्यादा नुकसान धार, झाबुआ और आलीराजपुर जिले में हुआ। यहां की 12 सीटों में से 9 पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया।

उपचुनाव में 'सरकार की ताकत' के बूते भाजपा ने जरूर सोनकच्छ सीट कांग्रेस से हथिया ली, लेकिन कोर्ट में लड़कर कांग्रेस ने धार सीट पर कब्जा जमाया और हिसाब बराबर कर लिया। 2008 के बाद जोन में यही दो बड़े उलटफेर हुए, लेकिन अब बड़ा सवाल सामने है- इस बार तस्वीर क्या होगी? जवाब से पहले मतदाता उम्मीदवारों की तस्वीर साफ होने का इंतजार कर रहा है।

इस सीट की तासीर विचित्र है। यहां से जीता कोई भी उम्मीदवार दूसरी बार विधायक नहीं बन सका। भाजपा के सत्यनारायण सत्तन यहां से चार बार चुनाव लड़े। केवल एक उपचुनाव जीते और तीन हार गए। भाजपा के लालचंद मित्तल, कांग्रेस के ललित जैन, रामलाल यादव भी एक से ज्यादा बार लड़े, लेकिन चुनाव एक-एक बार ही जीत सके।

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