राकेश दुबे@प्रतिदिन। और अब आडवाणी फिर से गुजरात अर्थात नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करने लगे है | पता नही “क्षण में तुष्टा और क्षण में रुष्टा” वाली कहावत का संदर्भ और पैमाने बदल गये है या मौके की नजाकत देखते हुए आडवाणी |
भाजपा की 'गतिविधियों' से नाराज चल रहे लालकृष्ण आडवाणी 'कोपभवन' से निकलकर आज छत्तीसगढ़ प्रवास पर पहुंचे। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पहले भारतीय जनता पार्टी की चुनाव अभियान समिति की कमान देने और फिर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारी पर नाराजगी जता चुके आडवाणी ने मोदी की तारीफ कर नए सवालों को जन्म दे दिया।
कल भाजपा से निष्कासित वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी के जन्म दिन पर आयोजित समारोह में अलग-अलग बैठे नरेंद्र मोदी और आडवाणी के बीच की दूरी कम करने का प्रयास राम जेठमलानी ने बीच की खाली कुर्सी को भर कर किया | इस प्रयास का फल आज रायपुर में सामने दिखा और आडवाणी ने विद्युत प्रदाय के मामले में गुजरात की तारीफ की | कल राम जेठमलानी द्वारा किये गये प्रयास का पारितोषिक जेठमलानी को भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व शीघ्र देने जा रहा है और यहीं से भाजपा अपने अंदरूनी अनुशासन की एक परिभाषा नये सिरे से तय करेगी | बोलने की सज़ा क्या और लिखने की सज़ा क्या ?
तुष्ट और रुष्ट होने के फायदे कम और नुकसान ज्यादा होते हैं | कम से कम भाजपा जो अपने दलीय प्रजातंत्र की बात कहते नहीं थकती है उसके कथनों का दोहरापन और और बेवजह अडंगे लगाने की तरकीबें उजागर होती है | और राजनीति से दूर रहने वाले संघ को राजनीति में उतरना पड़ता है, जो भाजपा में कई लोगों को पसंद नहीं आता |