संबंधों की संपदा को आजीवन संजोते रहे विट्ठलभाई

देवदत्त दुबे/19 सितंबर तेरहवीं पर विशेष। 
कुछ लोग होते है जो इतिहास बनते हैं और ऐसे भी लोग होते है जो इतिहास बनाते हैं। इतिहास बनाने वालों की कडी में सागर में जन्में बिट्ठल भाई जी पटेल का नाम बडे आदर पूर्वक से लिया जायेगा। बेजोड़ प्रतिभा के धनी बिट्ठल भाई गंाधीवादी तरीके से सादा जीवन उच्च विचारों को जिये, वे आजीवन संबंद्धों की संपदा को संजोते रहे।

 सागर ही नहीं देश के कोने-कोने में बिट्ठल भाई को जानने वाले लोग यही कहते हैं कि वे एक जिंदादिल इंसान थे। अपनो के बीच अब उनका ना होना दुखद है। मैने उनके साथ जीवन का एक लम्बा अरसा साथ-साथ गुजारा। वे कवि हृदय थे और मजे हुए राजनेता भी। गीत उनका स्वाभाव था तो राजनीति समाजसेवा का माध्यम। राजनीति को यदि काजल की कोठरी कहा जाता है तो बिट्ठलभाई उस कोठरी में भी बेदाग रहकर यह साबित कर दिये कि कोठरी नहीं उसमें रहने वाला जिम्मेदार होता है। उन्होंने अपने जीवन में भौतिक संपदा को कभी महत्व नहीं दिया। उन्होंने हमेशा संबंधों की संपदा को संजोने में रुचि दिखाई। फिल्म जगत, राजनीति, साहित्य के क्षेत्र में उपलब्धियों की ऊंचाई पर जाने वाले विट्ठल भाई पटेल थे। कहीं कहीं परिवारों से उनके त्रिस्तरीय पीढिय़ों से संबंध थे उनके हर क्षेत्र, हर जगह आज चाहने वाले मौजूद है। वे आज के दौर की राजनीति में ईमानदारी के एक सशक्त हस्ताक्षर थे। विट्ठल भाई की राजनीतिक यात्रा की बात करें तो....

मध्यप्रदेश के विभिन्न अंचलों में 1983 से 1984 तक, सागर जिला में मंत्री रहते हुए सागर जिले की दतिया से ओरछा तक, गैरतगंज से बेगमगंज तक एवं बरमान से जोतेश्वर तक साथियों सहित पद यात्रा एवं 1991 से 1993 तक प्रदेश एवं प्रदेश के बाहर गांधीवादी आत्म साक्षात्कर के तहत झाडू, पंजर लेकर सड़कों, अस्पताल, मरघट, तालाब, रेल्वे स्टेशन आदि सार्वजनिक स्थलों की सफाई लागातार 550 दिनों तक की। सागर नगर में 'एक रूपया निर्माण काÓ एक घंटा श्रमदान का अलख जगाकर सागर झील गहरीकरण हेतु 3,25,000 रुपये जन-सहयोग से इकट्ठा कर मध्यप्रदेश के जन संरक्षण कार्यक्रम में योगदान।

सागर के मरघट के लिए एक-एक रूपये मांगर करीब 80000 रुपये जन सहयोग में दमोह, काकागंज, नरयावली के मरघट का जीर्णोद्धार कराया। नरयावली मरघट के लिए पूरे गांव से एक-एक रूपया मांग कर मरघट शेड का निर्माण कराया व देवरी और दमोह का मरघट के सुधार में जन सहयोग किया। खण्डवा के अमर गायक स्व. श्री किशोर कुमार की समाधि के लिए एक-एक रूपया जनता से मांगकर रूपये 1,50,000 की भागीदारी। सागर की श्रीमती जया पाठक ने आपके गीतों के संग्रह पर शोध की, सागर विश्वविद्यालय ने श्रीमती जया पाठक को पीएचडी अवार्ड की।

बुन्देलखण्ड के गांधी के नाम से ख्यात प्रसिद्ध फिल्मी गीतकर श्री विट्ठलभाई पटेल सागर की धरती पर जन्में एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी है जो राजनीति, कविता और समाज सेवा की त्रिवेणी में एक साथ विचरण करते हैं। कवि विट्ठलभाई पटेल कई दशकों तक राजनीति में सक्रिय रहे और राजनीति में अपनी बेदाग छवि के लिए जाने जाते हैं। राजनीति में रहते हुए उन्होंने कोशिश की, कि गांधी के अनुरूप आचरण करें और उस पर वो खरे भी उतरे। राजनीति में व्यसन, ईमानदारी और व्यक्तिगत  जीवन में चारित्रिक दृष्टि से कबीर की उन पक्तिंयों को सार्थक करते हुए 'ज्यो की त्यों धर दीन्ही चदरियाÓ को चरितार्थ किया। बीडी उद्योग जगत के एक पूंजी पति के यहां जन्म होने के बाद उन्होंने अपना जीवन सादगीपूर्ण ढंग से जिया। उनकी जीवन शैली एक आम आदमी की तरह थी।

विट्ठल भाई जी अपनी युवावस्था में अपने आकर्षक व्यक्तित्व के साथ वम्बई शिक्षा अध्ययन के लिये गये। अपनी प्रतिभा से उन्होंने फिल्मी जगत के कलाकारों के साथ फिल्मीं संसार के जीवन और जगत को पहचानते हुए अपनी रुचि के अनुरूप रचना धर्मिता गीतों की सृजनात्मकता के साथ फिल्मों में गीत लिखना आरंभ किया।
हिन्दी सिनेमा के लोक प्रिय कलाधर्मी जो अपनी सांस्कृतिक सृजनशीलता और कलात्मकता के सर्वोच्च शिखर पर रहे। स्व. राजकपूर के सानिध्य में 'झूठ बोले कौआ काटेÓ जैसे गीत को देकर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित करने में सफल हुए। लगातार कई फिल्मों में उन्होंने गीत दिए जैसे बाबी, सन्यासी, दरियादिल, शायद जैसे अनेक फिल्में है जो फिल्म जगत में चर्चित भी हुई।

विट्ठल भाई पटेल गीत, संगीत और सांस्कृतिक गतिविधियों में शुरुआती दौर में सक्रिय रहे। उनका सांस्कृतिक अनुष्ठान सागर में किशोर समिति की स्थापना से आरंभ हुआ। किशोर समिति के अंतर्गत सागर में अनेकों सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहे। उन कार्यक्रमों की निरंतरता ने सागर को एक विशिष्ट पहचान दी। कविता और साहित्य से जुडे होने के कारण उनकी मानवीय संवेदना ने इंसानियत के प्रति एक राग पैदा किया। उन्होंने राजनीति में न आने के लिए संकल्प लिया अपने मातापिता की अनुमति भी राजनीति में आने के लिए बाधा थी। बीड़ी व्यवसाय के चलते और फिल्मी जगत में रूचि के कारण भी राजनीति उनके लिये अनुपयोगी लगता था। अपनी व्यक्तिगत प्रसिद्धि और पहचान तथा व्यक्तित्व के आकर्षण से न केवल सागर शहर प्रदेश और देश में एक ख्याति है, प्रतिष्ठा के शिखर और पहुंचने के बाद उनके गुरू श्रद्धेय पं. राधेश्याम महाराज पथरिया वालों के सानिध्य में विद्याचरण शुक्ल (विद्या भैया) से भेंट हुई। विद्या भैया ने उन्हें राजनीति में आने को कहा। अपनी मातश्री की अनुमति के बिना उन्होंने राजनीति में प्रवेश नहीं लिया। विद्या भैया ने विट्ठल भाई पटेल की मताश्री से आग्रह किया और वे राजनीति में हिस्सेदारी निभाने लगे।

ईमानदार छवि और चर्चित व्यक्तित्व के कारण कांग्रेसजनों ने पूरे सम्मान के साथ उनका नेतृत्व स्वीकार किया। राजनीति में लगभग एक दशक विधायक एवं मंत्री पदा का दायित्व पूरी निष्ठा के साथ निभाया।

विट्ठल भाई पटेल ऐसे व्यक्ति है जिस जमीन पर जाते, जिस नेता के साथ जाते उसको प्रभावित किये बिना नहीं रहते थे। उनके कांग्रेस के प्रति निष्ठा किसी से छिपी रहते थे। उनकी कांग्रेस के प्रति निष्ठा किसी से छिपी नहीं है। इंदिरा गांधी जब जेल गई तो सागर से विट्ठल भाई पटेल के नेतृत्व में समग्र देश में सबसे ज्यादा सागर के लोग ही जेल गए। कांग्रेस में जब जब संकट आया, कांग्रेस में अंर्तविरोध के स्वर जब जब उठे तब भी विट्ठलभाई पटेल के नेतृत्व ने कांग्रेस का दामन नहीं छोड़ा। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी, अर्जुसिंह, मोतीलाल बोरा, श्यामाचरण शुक्ला से उनका सीधा संवाद होता था। वहीं कई केन्द्रीय मंत्रियों के साथ भी उनका सामंजस्य बना रहा। स्व. इंदिराजी, राजीव जी के प्रति उनकी निष्ठा सर्व विदित है।

अपने मंत्रित्वकाल में उन्होंने जिले की पदयात्रा करके गांधी के जनदर्शन का अनुशरण किया गहरी मानवीय संवेदना के चलते आम गरीब के दुख दर्द को नजदीक से देखने के लिए एनके पदयात्राएं चर्चित रही हैं। राजनीति में सत्ता के परिवर्तन के बाद उन्होंने कांग्रेस की और गांधी की पंरपरा को नहीं छोड़ा। समाजसेवा का ब्रत लेकर वर्षों उन्होंने सागर शहर की सफाई का अभियान चलाया। कभी रेलवे स्टेशन पर कभी अन्य शहरों में जाकर सफाई अभियान में हिस्सेदारी निभायी। सफाई अभियान उन्हें बुंदेलखण्ड के गांधी होने का गौरव दिलाया वहीं दूसरी और उन्होंने एक-एक रुपया चंदा जन जन के बीच जाकर मांगा जिसे किसी न किसी उद्देश्य में उसका उपयोग कराया।

खंडवा में किशोर कुमार की समाधि के जीर्णाद्धार और उसके उन्नयन के लिए एक-एक रूपया प्रदेश की सड़कों पर जनता से मांगा। विट्ठल भाई के गांधीवादी तरीके से सत्ता भी विवश हो जाती है। स्व. किशोरदा की समाधि के उद्धार के लिए विट्ठल भाई के प्रयासों से सरकार भी स्पंदित हुई और म.प्र.शासन ने भी उक्त स्थान को विकसित करने का निर्णय लिया। बुंदेली बोली को भाषा के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की तडप उनके मन में आजीवन बनी रही, जब-जब मौका मिला बिट्ठल भाई  ने अपनी इस भावना से लोगों को परिचित कराया। मिलनसार व्यक्तित्व और सांगठनिक क्षमता तो ऐसी थी कि राजनीतिक विरोधी भी उनके कायल हो जाते थे। 
यही कारण है कि सागर और समूचे बुंदेलखण्ड में उन्हें बुंदेलखण्ड का गांधी कहकर बुलाया जाता था। उनकी लोकप्रियता मिलनसार व्यक्तित्व आम आदमी की जीवनशैली और संपन्नता जींवत समाज में विट्ठलभाई पटेल की हमेशा याद दिलायेगी।  श्री पटेल के निधन से एक और गांधीवादी नेता हमारे बीच से चला गया जिसकी पूर्ति होना अब संभव दिखाई नहीं देता। 


If you have any question, do a Google search

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!