अब तो मान लीजिये, आप समाज के नहीं असामाजिक लोगों के साथ है !

राकेश दुबे@प्रतिदिन। नियमगिरि, सिंगुर,नोयडा, बस्तर हो या झाबुआ| हर जगह की समस्या, उसे पैदा करने वाले भी एक है| समस्या प्राकृतिक साधनों का राजनीतिक संरक्षण में अंधाधुंध दोहन है| विरोध करने वाले आदिवासी हो, स्वयंसेवी संस्थान हो या सरकारी अफसर|

राज्य की सरकार, नहीं तो केंद्र की सरकार सूली का डर बताकर शांत कर देती है] अब  तो सरकारें उच्चतम न्यायालय के फैसलों का मनमाना अर्थ भी निकलने लगी है और प्रजातंत्र में सर्वोच्च सदन मानेजाने वाली संसद में भी ये मुद्दे नहीं उठ पाते है| सरकार और प्रतिपक्ष में संसर्ग दोष [सदन में उपस्थित महान आत्माओं के कारण] आ गया है और दोनों के मध्य इसी कारण नूराकुश्ती दिखाई देती है|

कुछ ठोस उदाहरण ,आम आदमी की पक्ष और प्रतिपक्ष के विरुद्ध बनती धारणा की नींव में| कश्मीर से कन्या कुमारी तक हर बड़े-छोटे राजनीतिक दल के लोग सडक, खनन और निर्माण के ठेकों में संलग्न है| राज्य में जाँच करने वाले सरकारी अमले को साम दाम दंड और भेद से नियंत्रित किया जाता है| ज्यादा विरोध पर सी बी आई जाँच और तोते सी रिपोर्ट| न्यायालय कुछ कहे तो हस्तक्षेप की तोहमत| अब उड़ीसा में ग्राम सभा बनाई जा रही है,नियमगिरि के मामले में| सोनिया गाँधी को चिट्ठी लिखनी पद रही है नोयडा मामले में |

समाज क्या है ? जिस गाँव से आप आते है सिर्फ वही समाज नहीं है,सालों से आपके जल जंगल जमीन नदी और पहाड़ का पहरुआ आदिवासी समाज का हिस्सा नहीं पूरा समाज है| चुनाव में आपको जाति और पंथ के आधार पर वोट दिलाने वाला , संसद में आपके बगल में बैठनेवाला, छद्म समाज का प्रतीक है| गौर कीजिये आप किसकी सोहबत में हैं| आदिवासी राष्ट्रवादी है प्रकृतिवादी है और, ये तो सिर्फ मतलबी हैं|


  • लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं।
  • संपर्क  9425022703



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