अध्यापक मोर्चा: सरकार नेताओं के भरोसे बैठी है और नेताओं को कुछ पता ही नहीं

प्रदीप गौर। अध्यापकों की चुप्पी कभी साधारण नहीं हो सकती क्योंकि अपने समय के महान राजनैतिक गुरु आचार्य चाणक्य के यह वचन कभी गलत हो सकते की एक शिक्षक कभी साधारण नहीं हो सकता राजन प्रलय और निर्माण उसकी गोद में खेलते है।

आज जैसी स्थिति बन रही है वह विस्फोटक ही कही जा सकती है सरकार उन चंद नेताओं के भरोसे बैठ कर समय निकल रही है जिन्हें शायद यह भी नहीं मालूम की परिवार का लालन पालन कम वेतन में कैसे किया जाता है क्योंकि अगर वह स्थिति से वाकिफ होते तो कम से कम 1—4 से लागू वेतनमान को छंठा वेतन नहीं कहते आज मेरे जैसे लाखों अध्यापक है जो अपने जीवन की गाड़ी अल्प वेतन में किसी तरह खीच रहे हैं।

मैं अपने उन साथियों को विशेष रूप से बताना चाहूँगा की मैं कोई नेता नहीं हूँ पर आम अध्यापक की जिन्दगी को खुद जीता हूँ इसलिए आप लोग सावधान हो जाये क्योंकि अगर आम अध्यापक का अहित हुआ तो यह अध्यापकों की पूरी समाज आपको कभी माफ़ नहीं करेगी।

आज यदि अध्यापक चुप है तो इसका मतलब यह नहीं की वह संतुस्ट हो गया है वह तो अन्दर ही अन्दर अपने पिछले 17 सालों का हिसाब लगा रहा है और हर बार उसे अपने साथ हुए धोखे का एहसास होता है आप लोग एक दूसरे पर आरोप लगते रहते है पर आम अध्यापक ने हमेंशा सभी का साथ दिया है।

पर अब उसे यह एहसास हो गया है की उसके मत की ताकत  हर सरकार पर भारी है जो अध्यापक साल भर जनजागरण का कार्य करता है उसे नासमझ समझने की भूल कम से कम सरकार को तो नहीं करना चाहिए

साथियों आज 1995 से लगे अध्यापकों की औसत आयु लगभग 45-50 होगी अब बताइए हमारी कार्य करने की 80 प्रतिशत आयु निकल गई है कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकार ने हमारा जी भरकर शोषण किया है।

हमारा परिवार हमारे बच्चों का वर्तमान और भविष्य दोनों ख़राब कर दिया है आज हमारे पास बीपीएल  का कार्ड ना होते हुए भी हमारी स्थिति बीपीएल जैसी ही है हमारे साथी कर्मचारी ही हमारी हसी उड़ाते हैं।

ऐसी स्थिति में अगर सरकार आज भी यह सोचे की झुनझुना दे कर अध्यापको को शांत कर दिया जाये तो यह सरकार की सबसे बड़ी भूल होगी आम अध्यापको को सामान कार्य सामान वेतन और शिक्षा विभाग में संविलियन से कम कुछ मंजूर नहीं है और अगर सरकार मुगालते में है तो झुनझुना थमा कर देखलें या गुप्त सर्वे करा लें।

मेरी कुछ महान अध्यापक नेताओं से चर्चा हुई तो उनका कहना पड़ा की सामान कार्य सामान वेतन में सरकार पर ज्यादा बोझ पड़ेगा तो मैंने कहा आप अध्यापको के नेता हो या सरकार के भाई बोझ सरकार पर पड़ेगा तो तुम्हे क्या तकलीफ है।

मैं उन नेताओं के सम्मान को ख़त्म नहीं करना चाहता इसलिए नाम नहीं बता रहा  हूँ पर साथियों अब समय आ गया जब हम पुनः एकजुट होकर अपने हक के लिए सड़क पर आ जाएँ  नहीं तो हमारे अपने बच्चे हमें कभी माफ़ नहीं करेंगे क्योंकि जिक्र उनका होता जिनको अपनी ताक़त का पता होता है अगर हम ऐसे ही सोते रहे तो हमारे हिस्से की रोटी कोई और ले जायेगा क्या यह आपको  और आपके परिवार को मंजूर होगा।

फैसला आपका आखिर घर है आपका

प्रदीप गौर
सचिव
राज्य अध्यापक संघ  
सिवनी मालवा
9630190078

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