ठगी की शातिर वारदात: इन्दौर में 7 बैंकों से 32 लाख का लोन

इंदौर। सात बैंकों से 32 लाख का लोन लेकर चंपत होने वाला शातिर ठग एक लकड़ी व्यापारी निकला। उसने बैंकों को ठगने के लिए सिख का वेश धारण कर लिया था। जिस किराए के मकान में वह रहा, उसकी रजिस्ट्री फर्जी तरीके से अपने नाम की और इस मकान पर लोन ले लिए।

यह शातिर ठगोरा प्रीतेश पिता रमेशचंद्र बिंदल निवासी सेक्टर-ए स्कीम 71 है। इसे पुलिस ने सोमवार को पकड़ा था। एएसपी विनय पॉल ने बताया कि उसकी टिंबर मार्केट में चंदेश सप्लायर के नाम से लकड़ी की फर्म है।उसने इसी दुकान के नाम से एचडीएफसी, आईसीआईसीआई सहित अन्य बैंकों से कुछ छोटे लोन 1999 से 2005 के बीच में लिए और सभी को चुकता कर दिया।

इससे उसे पता चल गया लोन देने में बैंक कहां चूक करती हैं। उसने पुलिस को बताया टिंबर मार्केट में सिख व्यापारियों के बीच रहते हुए उसे लगा कि मैं भी सरदार का वेश धारण कर लूं तो कोई पहचान नहीं सकेगा।

दाढ़ी बढ़ाई और पहन ली पगड़ी

प्लानिंग के मुताबिक उसने दाढ़ी बढ़ाई और पगड़ी पहनकर सिख का रूप रख लिया। 1 अक्टूबर 2005 को प्रॉपर्टी 47, ग्रेटर वैशाली में किराए का मकान लिया। यह मकान नवीन वैद्य का था। एग्रीमेंट में उसने खुद को रंजीत सिंह सलूजा निवासी बेटमा बताया। उसने पत्नी का फोटो भी दिया था वह भी फर्जी निकला। लोहामंडी में इसी नाम से एक दुकान किराए पर ली। यहां उसने तेल और खली के व्यापार का सेटअप तैयार कर एक लड़का बैठाना शुरू कर दिया।

मकान हड़पने की कोशिश शुरू

लड़का बैठाने का उद्देश्य यह था कि बैंक वाले आए तो सब वास्तविक लगे। उसने दुकान के जरिये करीब 15 लाख का लोन बैंकों से लिया और किस्तें भी भरने लगा। एक बार उसने अखबार में एक व्यक्ति के मकान की रजिस्ट्री गुमने का विज्ञापन पढ़ा। इससे उसे लगा कि वह किसी तरह नवीन वैद्य के मकान की डुप्लीकेट रजिस्ट्री निकलवा ले और मकान अपने नाम कर ले। उसने वकीलों से राय ली तो पता चला ऐसा संभव है।

मकान मालिक ने जुटाए सबूत

जब प्रीतेश मकान खाली कर चला गया तो असली मकान मालिक नवीन को घर पर लोन होने की जानकारी मिली। उन्होंने बैंक वालों से बात की तो खुलासा हुआ मकान रंजीत सिंह के नाम हो गया है। उन्होंने खुद रंजीत के खिलाफ सबूत जुटाए। तब खुलासा हुआ उसने आईसीआईसीआई, बजाज फायनेंस, एचडीएफसी, सिटी बैंक व एचएसबीसी से करीब 32 लाख का लोन लिया है।

मकान के लिए दूसरा रूप बदला

उसने जीआरपी थाने से एफआईआर की एक कॉपी ली और उसकी मदद से हूबहू रजिस्ट्री गुमने की एफआईआर बनवा ली। अन्नपूर्णा थाने की नकली सील भी बनवा ली। रजिस्ट्रार ऑफिस में उसने एक महिला को नवीन वैद्य की मां बताकर पेश किया और डुप्लीकेट रजिस्ट्री निकालने तथा रंजीत सिंह को बेचने की प्रक्रिया शुरू की। वह पहले रंजीत बनकर पहुंचा और लिखा-पढ़ी पूरी करने के बाद अगले दिन दाढ़ी कटाकर, चश्मा लगाकर व पगड़ी हटाकर नवीन वैद्य बनकर पहुंच गया। इस तरह मकान उसके नाम हो गया।

फर्जी नाम से टैक्स, ड्यूटी भरी

मकान निगम से अपने नाम ट्रांसफर कराने के लिए टैक्स भरा, रंजीत सिंह के नाम से एलआईसी की पॉलिसी व बच्चों की फीस की रसीदें भी लगाई तथा स्टाम्प ड्यूटी भी भरी। बाद में उसने इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर मकान गिरवी रखकर 25 लाख का लोन लिया और चंपत हो गया।

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