अध्यापक मोर्चा: फिर डंडी मारने की जुगत: 0/0 बराबर 2

अनिल नेमा। मध्यप्रदेश में पिछले 17 सालों से अल्प वेतन में गुजर बसर कर रहे,मूलभूत सुविधाओं से महफूज शिक्षाकर्मी /अध्यापकों को पुनःछलने के लिये प्रदेश के आला अफसर नित नई योजना बन रहे है। बीते 4 माह से सरकार हर रोज कह रही है कि सरकार अध्यापकों के भविष्य को लेकर चिन्तित है परन्तु छत्तीसगढ़ में नये वेतनमान देने के बाद भी प्रदेश सरकार आज तक किसी निर्णायक मुकाम तक नही पहुंच पाई है।

कभी 12 साल,कभी 8 साल ,कभी सभी को लाभ, कभी परीक्षा ,कभी किस्तों में लाभ। अब बजट की दुहाई देकर प्रदेश के चाणक्य अफसर ऐसे विकल्प की खोज में है जिसमें खजाने पर अधिभार भी न पड़े और अध्यापकों को खुश किया जा सके। बिना आर्थिक लाभ दिये मुंगेरीलाल के सपनें दिखाकर किस्तों में 'शिक्षा विभाग में संविलयन' व 6 वें वेतनमान की बात सामने रखकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अध्यापक के वोट बैक का केन्द्रीकरण हेतु सरकार प्रयासरत है । सरकारी जानती है कि 2008 के चुनाव में मध्यप्रदेश में 2.51 करोड़ वोटर थे ।

भाजपा को चुनाव में 94.93 लाख ,कांग्रेस को 81.70 लाख वोट मिले
दोनों के वोटों का अंतर 13.23 लाख था।
भाजपा को 143 सीट व कांग्रेस को 71 सीट एवं अन्य को 16 सीट मिली
अर्थात कांग्रेस से 13.23 वोटों के कारण भाजपा को दुगनी सीट मिली व भाजपा की सरकार बनी।
मध्यप्रदेश में अध्यापक,संविदा शिक्षक,गुरूजी की संख्या -2.60 लाख
एक अध्यापक परिवार के वोटों की संख्या-06
अध्यापकों के एकजुट होने की स्थिति में उनके पास कुल वोटों की शक्ति -
2.60 लाख x 6 = 15.6 लाख

अर्थात किसी भी पार्टी के परंपरागत वोटो में अध्यापक के 15 लाख वोट जुड़ जाये तो उस पार्टी की सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता।

इस शक्ति के विकेन्द्रीकरण न हो तो और सरकार का खजाना भी खाली न हो इस कारण चाणक्य अर्थशास्त्रियों ने '' किस्तों व सपनो '' का फार्मूला सुझाया है यह फार्मूला गणित की उस संक्रियाओं पर तो लागू होता है जिसमें कुछ लिये दिये बिना ही यह सिद्ध किया जा सकता है कि हमने आपकी परिलब्धियों को दुगुना कर दिया।

For Example-
0 /0 = 2
अर्थात 100-100 / 100-100
अर्थात 10 का वर्ग -10 का वर्ग / 10 x10 -10 x10
अर्थात (10+10)(10-10)/ 10(10- 10)
अर्थात 20 / 10
अर्थात 2

मित्रों किस्तो में लाभ का अर्थ है हमेशा सरकार की तरफ हम याचक की दृष्टि से निहारते रहे, हम किश्तों वाली अवधारणा का विरोध करते है हमारी एक मांग है ‘‘एक काम, एक नाम व एक दाम’’ ।

‘‘एक काम, एक नाम व एक दाम’’ का अर्थ है -

1995 में नियुक्त सहायक शिक्षक आज 35000 रूपये वेतन ले रहे है जबकि 1996 में नियुक्त शिक्षाकर्मी वर्ग 3/सहायक अध्यापक 11000 रूपये प्राप्त कर रहा है । जब एक काम तो 1/3 गुना क्यों वेतनमान ?
1998 में व्यवसायिक शिक्षा में नियुक्त व्याख्याता आज हाॅयर सेकेण्डरी प्राचार्य के रूप में 40,000 रूपये पगार ले पा रहे है जबकि 1996 का शिक्षा कर्मी वर्ग 1 क्रमोन्नती पदोन्नति तो दूर की बात चपरासी से कम वेतन पर गुजर बसर कर रहा है।

मित्रों ‘‘एक काम, एक नाम व एक दाम’’ का आशय है -

(1).अध्यापकों का शिक्षाविभाग में संविलियन,
(2).1998 में नियुक्त शिक्षाकर्मी ,2003 में नियुक्त संविदा शिक्षक को उसी दिनांक पर नियुक्त नियमित शिक्षक के समान वेतन मान व अन्य सुविधाएं
(3).नियमित शिक्षक के समान समस्त अध्यापकों को 1 जनवरी 2006 से 6 वे वेतन का लाभ व किस्तों में एरियर का भुगतान ।
(3). 2006 के पूर्व के समस्त अध्यापकों / संविदा शिक्षक का वेतन निर्धारण नियमित शिक्षकों के समान।

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