राकेश दुबे@प्रतिदिन। एक कहावत है -"यथा राजा तथा प्रजा "। जी हाँ । यह मध्यप्रदेश के लिए ही कही जा रही है। घंसौर में एक बच्ची के साथ और भोपाल में एक वृद्धा के साथ हुए दुष्कृत्य ने यह प्रमाणित कर दिया है कि पिछले वर्ष से महिला अपराधों में अव्वल रहने वाले मध्यप्रदेश में कोई सुधरी हुई तस्वीर नहीं दिख रही है और जो दिखाई दे रहा है उसके अनुसार इसके और अधिक गंभीर होने का अंदेशा है।
कारण राजनीति और उससे समाज में आते संस्कार हैं । सत्ता हो या प्रतिपक्ष सभी दोहरे अर्थों के संवाद बोलना या दोहराना अपनी शान समझ रहे हैं ।
मंत्री 'कु' 'वर' विजय शाह को सब कोस रहे है। यह कोई मानने को तैयार क्यों नहीं है की वे आदतन ऐसे ही थे और जब वे किसी और के बारे में बोलते थे तो आप उनकी पीठ थपथपाते थे । तब आपने उन्हें बड़ावा दिया और जब उनका हाथ आपकी और आने लगा तो .......। महिला कोई भी हो चाहे किसी कर्मचारी की पत्नी इतनी निर्लज्ज नहीं होती की अपनी इज्जत को कोर्ट कचहरी में ले जाये।
कुछ चिंगारी होगी तभी तो यह धुआं निकला है । किसी भी संगठन के प्रदेशाध्यक्ष के पद उस संगठन की सम्पूर्ण विचारधारा का प्रतिबिम्ब होता है । हल्के सम्वाद बोलने की परम्परा जो पिछले समय स्थापित हो गई है । नरेंद्र सिंह तोमर उसे बदलेंगे , यह अनुमान शायद गलत साबित हो रहा है ।
प्रतिपक्ष भी न केवल उन संवादों को दोहरा रहा है बल्कि इस परम्परा के वाहकों को जैसे तैसे राजनीतिक लाभ के लिए अपने दल में शामिल करने की जोड़तोड़ कर रहा है । दुर्गन्ध का स्वभाव वही रहेगा चाहे वह आपके पास से आ रही हो या किसी और के पास से । संस्कार बदलिए, आपका दावा तो संसार बदलने का है ।