राकेश दुबे@प्रतिदिन। अंग्रेजी में एक शब्द है “समर्साल्ट”| हिंदी शब्दकोष में इसका यूँ तो इसका अर्थ कलाबाज़ी होता है , परन्तु व्यवहारिक भाषा में इसका अर्थ पलटना होता है, और राजनीति में इसकी बहुतेरी उपमा और अर्थ होते हैं और उनका प्रयोग परिस्थिति के अनुसार होता है|
शरद पंवार भी आज विदेशी मूल के उस मुद्दे से किनारा कर गये हैं| जिसको लेकर के एन गोविन्दाचार्य, शरद पंवार और पी ए संगमा ने 2004 में अलख जगाया था और देश को प्रत्यक्ष प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह मिले थे| नेपथ्य में सरकार कैसे चल रही है और कौन चला रहा है सब जानते हैं|
पी ए संगमा अपनी तरह इस मुद्दे को लेकर कुछ समय सक्रिय रहे फिर पुत्री मोह ने उनसे यह मुद्दा वापिस करा दिया| राजनीतिक दौर और संगमा के कुर्सी प्रेम की दौड़ ने अगाथा की गाथा को कहीं दफन कर दिया| शरद पंवार २०१४ के चुनाव को सामने रखकर आज से ही समीकरण बिठा रहे हैं| लगता है उनकी योजना तीसरे मोर्चे के उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री पद है|
इस मामलें में आने वाली सबसे बड़ी बाधा उनकी २००४ में इस मुद्दे पर कहे गये वाक्य थे| उनने भी गलती सुधार ली है| अब बचते हैं के एन गोविन्दाचार्य| वे अपने मुद्दे पर कायम है, उनका गोल राजनीति को सुधारना है| जैसा उन्होंने आज फिर दोहराया वे राजनीति को पटरी पर लाने का प्रयास करेंगे| राजनीति पटरी पर तभी रह सकती है, जब हम मुद्दे पर कायम रहे और वे सही हो| आज पंवार जी सोनिया जी की शान में कसीदे पढ़ रहे है, मान रहे है वे उस दिन गलत थे| जनता को फैसला करना होगा कि वे कब सही थे|