शासकीय विश्वविद्यालयों पर अस्तित्व का संकट, मंत्री एक तो मानदंड दोहरे क्यों?

 
भोपाल। राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री एक हैं तो राज्य शासन छात्रों के साथ दोहरा बर्ताव क्यों किया जा रहा है? परंपरागत कोर्सों के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है? ये सवाल उठाए हैं राजधानी के राजीव गांधी कॉलेज के संचालक सैयद साजिद अली एवं एक्सटाल समूह के आदित्य भटनागर ने।

उन्होंने कहा कि आन लाइन पंजीयन व्यवस्था के हम विरोधी नहीं है, किंतु इसकी अंतिम तिथि बीई/एमबीबीएस/ बीएएमएस/ बी एंड एन आदि कोर्स के सात दिन बाद तक घोषित होना चाहिए थी, जो नहीं की गई। इस कारण प्रदेश के 9 सौ से अधिक परंपरागत कोर्स के कॉलेजों में साढ़े चार सौ—पांच सौ छात्र प्रोविजनल एडमिशन लेकर अध्यापन कर रहे हैं। इन छात्रों को कोर्स चुनने में अन्य छात्रों की तरह वरीयता चयन का अधिकार है, इसलिए इन्हें नियमित छात्र के रुप में देखा जाना चाहिए। उनके साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।

सरकार के अधीन शासकीय विश्वविद्यालय और निजी विश्वविद्यालय दोनों ही हैं, फिर निजी विवि को आन लाइन से छूट कैसे दे दी गई, यदि उन्हें छूट दी जाए तो शासकीय विवि से संबद्ध् सभी कॉलेजों को दी जाने के आदेश हों। अन्यथा निजी विश्वविद्यालयों के सामने शासकीय विश्वविद्यालयों का अस्तित्व संकट में आ जाएगा।

कॉलेज संचालकों ने कहा कि ऐसे समय जब परंपरागत कोर्स देश—दुनिया में अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं, ऐसे में छात्र की प्रथम वरीयता बीई/ एमबीबीएस/बीटेक/ पैरा मेडिकल आदि के बाद अंतिम वरीयता बीबीए/बीसीए/ बीएससी/ बी.कॉम/एमसीए है, इनके प्रवेश अंतिम वरीयता में बंद करना होंगे।

उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा विभाग के दोहरे मानदंडों के कारण लाखों छात्रों का भविष्य अंधकारमय है। उन्होंने शासन से मांग की कि छात्रों के मौलिक अधिकारों, शासकीय विश्वविद्यालयों के अस्तित्व, निजी कॉलेजों की जायज समस्या के निदान, परंपरागत कोर्सों के अस्तित्व पर शासन गंभीरता से विचार कर समस्या का तुरंत निदान कर छात्रों को न्याय प्रदान करें।
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