
मामले को मैनेज कर लिया गया है। हर शिकायतकर्ता को चुप करा लिया गया है। जो मंत्री माया सिंह ने बिल्डर्स पर एफआईआर कराने की बात की थी, अब वो इसे मामूली मामला बता रहीं हैं। विज्ञापन में उनकी फोटो भी बिना अनुमति के प्रकाशित हुई थी। इतना ही नहीं सीएम शिवराज सिंह और महापौर आलोक शर्मा की फोटो भी थी।
निगम नहीं कर रहा पहल
नगर निगम न तो अब बिल्डर्स पर एफआईआर दर्ज कराने की पहल कर रहा है और न ही किसी जांच की बात कर रहा है। मामले की शुरूआती जांच में सामने आया है कि प्रधानमंत्री आवास योजना की गाइडलाइन के तहत सरकार सब्सिडी पर गरीबों को आवास मुहैया कराती है। इस योजना के तहत केंद्र सरकार और राज्य सरकार के अलावा नगर निगम अंशदान करती हैं और बाकी की पूंजी हितग्राही को देना होता है लेकिन क्रेडाई के शिविर में ऐसा कुछ नहीं हुआ। बिल्डर्स ने अपनी बिना बिकी प्रॉपर्टी योजना के नाम पर निर्धन ग्राहकों को टिका दी।
आवास योजना के तहत नगर निगम या सरकार इस योजना में निजी बिल्डर्स से साझेदारी नहीं कर सकती है, लेकिन विज्ञापन में नगर निगम और क्रेडाई की साझेदारी में शिविर आयोजित करने का दावा किया गया। जांच और नियमों के आधार पर साफ हो चुका है कि बिल्डर्स ने जो भी किया वो गैरकानूनी है।
महापौर की भूमिका संदिग्ध
इस मामले में नगर निगम महापौर आलोक शर्मा पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। नगर निगम भोपाल के पार्षद मोनू सक्सेना का कहना है कि गरीबों को आवास मुहैया कराने की कोई ऐसी योजना नहीं है कि जिसमें निजी बिल्डर्स भागीदार बनें और अपने मकानों को बेचने के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की तस्वीरों का उपोयग करें।
पार्षद मोनू सक्सेना ने नगर निगम कमिश्नर को चिट्ठी लिखकर कार्रवाई की मांग की है और महापौर आलोक शर्मा पर बिल्डर्स से सांठगांठ का आरोप लगाते हुए कहा है कि इतने बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े के बाद भी नगर निगम महापौर और नगरीय प्रशासन विभाग कार्रवाई नहीं कर रहा है।
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