नईदिल्ली। छुआछूत केवल हिंदुओं में नहीं होती, मुसलमानों में भी होती है, लेकिन उनके मामले अक्सर सामने नहीं आते। राजस्थान से एक ऐसी ही खबर आ रही है। यहां एक बड़ा वर्ग छुआछूत का शिकार है। मस्जिद में एंट्री नहीं दी गई। पढ़ाई जरूरी थी इसलिए कब्रिस्तान के बीचोंबीच मदरसा बना लिया। यहां हर रोज 30 बच्चे पढ़ने आते हैं। यह मदरसा पिछले 13 सालों से संचालित है और इसे सरकारी ग्रांट भी मिलती है। बच्चे कब्रिस्तान के गेट के बाहर चप्पल उतार कर कब्रों से होते हुए अपनी ‘कक्षा’ तक पहुंचते हैं। यह कब्रिस्ताव एक बड़ी मस्जिद के पिछवाड़े स्थित है, इस मस्जिद में इन बच्चों को जाने की इजाजत नहीं है। बच्चे अपना पाठ भी धीमी आवाज में याद करते हैं ताकि मस्जिद के केयरटेकर को बुरा न लगे।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, बाकायदा एक चेतावनी जारी की गई है कि ‘बच्चों की आमद से मस्जिद पाक साफ नहीं रह जाएगी।’ एक स्थानीय नागरिक ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया, ”यहां खेलना तो किसी लॉटरी जैसा है। वे (बच्चे) तेज आवाज में बोल नहीं सकते। असल में, कुछ रसूखदार मुस्लिमों ने बच्चों के कब्रिस्तान में पढ़ने पर भी आपत्ति जताई है, उनका कहना है कि इससे कब्रों को दिक्कत होती होगी।”
हर गुजरते दिन के साथ कब्रिस्तान में कब्रों की संख्या बढ़ती जा रही है और मदरसे की जगह घटती जा रही है। टीचर्स को लगता है कि जल्द ही यहां चलने की जगह भी नहीं बचेगी। जिन दिन किसी को दफनाया जाता है, उस दिन कोई क्लास नहीं लगती। मदरसा में कुल 60 बच्चे हैं, लेकिन एक साथ 30 से ज्यादा बच्चे नहीं बैठ पाते। सभी बच्चे गरीब परिवारों से हैं। बच्चों के पढ़ने की यह जगह मदरसा बोर्ड के तहत आती है जिसे राज्य सरकार से ग्रांट और सहायता मिलती है। संपत्ति राजस्थान वक्फ बोर्ड के अधीन रजिस्टर्ड है।