सद्भावना ही धर्म

ना मंदिर, ना मस्जिद न ही गिरजाघर की बात करो। ना ही किसी धर्म पर नाज करो। 
सभी धर्मों का है उपदेश । शांति, दया और सद्भावना का है संदेश ।
मानवता को ही सच्चा धर्म बनाओ। प्रेम, सद्भाव से अलौकिक धाम सजाओ।
दिलो को जोड़ो नफरत को तोड़ो।
दिल में दया,मन में विश्वास ।आपस में रखो प्रेम उल्लास।
घृणा की आग न दिल में रखो,शांति का पैगाम सुनाओ।
जिससे दिल में प्रेम भरे,उसी को जीवन संग बनाओ।
भाई चारे की धार बहाओ, दुखियों में मुस्कान बढ़ाओ।
रंग, भाषा, जाति न मानो,हर मानव में ईश्वर पहचानो।
नफरत का बादल दूर हटाओ, प्रेम की धारा सहर्ष बहाओं।
जहां दया,करुणा हो संग,वही खिलता है ये जीवन रंग।
जब हाथ मदद को बढ़ते है,तब ईश्वर की छाया पड़ती है।
जब एकता हो जीवन का गान, तभी  सद्भावना का होगा सच्चा सम्मान।
 देवेंद्र संग  सब संकल्प करें, मातृभूमि को नमन करें।
राम ,कृष्ण, बुद्ध, महावीर और गुरुनानक की  पावन मातृभूमि से,सद्भावना, संप्रुभता और मर्यादा का फिर से वरण करें। 
डी. एम. पाण्डेय
(पुस्तकालयाध्यक्ष)
मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय गोरखपुर, यू. पी.
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