MAHAKAL मंदिर के पास तकिया मस्जिद भूमि अधिग्रहण वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज

नई दिल्ली, 18 दिसंबर 2025
: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उज्जैन में महाकाल मंदिर परिसर के विस्तार के लिए पड़ोसी तकिया मस्जिद की भूमि के अधिग्रहण को चुनौती देने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका मोहम्मद तैयब बनाम नगरीय प्रशासन और विकास विभाग व अन्य मामले में दायर की गई थी। 

याचिकाकर्ता केवल मुआवजा चाहता था

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता, जो केवल एक भक्त था और भूमि का मालिक नहीं था, उसे अधिग्रहण कार्यवाही पर सवाल उठाने का कोई अधिकार नहीं है। पीठ ने यह भी गौर किया कि अधिग्रहण अधिसूचनाओं को कोई ठोस चुनौती नहीं दी गई थी, और याचिकाकर्ता की शिकायत केवल मुआवज़े (award) तक सीमित थी, जिसके लिए वैकल्पिक वैधानिक उपचार पहले से ही मौजूद है। 

याचिकाकर्ता के तर्क और न्यायालय की प्रतिक्रिया

याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ेफ़ा अहमदी ने तर्क दिया कि अधिग्रहण की कार्यवाही मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण थी क्योंकि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवज़े और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 की धारा 4 से 8 के तहत अनिवार्य सामाजिक प्रभाव आकलन (Social Impact Assessment - SIA) कभी नहीं किया गया था। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि याचिकाकर्ता के पास अवैधता के आधार पर अधिग्रहण के आदेश को चुनौती देने का अधिकार है। 

हालांकि, पीठ ने याचिकाकर्ता की स्थिति पर सवाल उठाया, यह इंगित करते हुए कि वह केवल एक अधिभोगी (occupant) था, न कि भूस्वामी। पीठ इस बात पर कायम रही कि चुनौती केवल मुआवज़े (award) तक सीमित थी, न कि अधिग्रहण कार्यवाही तक।

अधिग्रहण का उद्देश्य और विवाद

याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि राज्य ने महाकाल लोक चरण-II विकास योजना के तहत आस-पास के महाकाल मंदिर परिसर के लिए पार्किंग सुविधाओं के विस्तार के लिए भूमि का अधिग्रहण किया। याचिका में तर्क दिया गया था कि यह 2013 अधिनियम की धारा 2(1)(b) के तहत एक वैध "सार्वजनिक उद्देश्य" नहीं था, क्योंकि भूमि को एक धार्मिक संस्था के ख़र्चे पर दूसरे की सुविधा के लिए लिया जा रहा था, जिससे संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26 और 300-ए का उल्लंघन हुआ। 

याचिका के अनुसार, अधिग्रहित भूखंड तकिया मस्जिद वक्फ संपत्ति का हिस्सा थे और 1985 से मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड के साथ विधिवत दर्ज थे। याचिका में वक्फ अधिनियम की धारा 91 का अनुपालन न करने का भी आरोप लगाया गया था, जिसके तहत कलेक्टर को किसी भी वक्फ भूमि को अपने अधिकार में लेने से पहले वक्फ बोर्ड को सूचित करना और उसकी सुनवाई करना आवश्यक है।

पृष्ठभूमि और अंतिम परिणाम

वर्तमान याचिकाकर्ता, जिसने खुद को तकिया मस्जिद का भक्त और नियमित उपासक बताया, ने पहले मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में एक अलग रिट याचिका दायर की थी, जिसे भी खारिज कर दिया गया था। उच्च न्यायालय ने 11 जनवरी के अपने फैसले में अधिग्रहण को बरकरार रखा था, यह मानते हुए कि याचिकाकर्ताओं के पास, जो रिकॉर्डेड भूस्वामी या टाइटल-धारक नहीं थे, मुआवज़े के संबंध में 2013 अधिनियम की धारा 64 के तहत वैकल्पिक वैधानिक उपचार उपलब्ध था।

इससे पहले मस्जिद के विध्वंस को चुनौती वाली याचिका भी खारिज कर दी थी

उल्लेखनीय है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद के विध्वंस को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका भी खारिज कर दी थी। मस्जिद को कथित तौर पर 11 जनवरी, 2025 को ध्वस्त कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका को खारिज किए जाने से महाकाल लोक चरण-II परियोजना, जो महाकाल मंदिर परिसर और आस-पास के सार्वजनिक स्थानों का विस्तार करने के उद्देश्य से उज्जैन में एक प्रमुख राज्य-समर्थित पुनर्विकास योजना है, के भूमि अधिग्रहण विवाद को अंतिम रूप मिल गया है।
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