Legal news: क्या DE के दौरान सरकारी कर्मचारी जिरह कर सकता है? हाई कोर्ट का लैंडमार्क जजमेंट पढ़िए

रायपुर, 21 दिसंबर 2025
: जब किसी सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय जांच शुरू होती है तो उस कर्मचारियों को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाता है। जांच के दौरान अन्य कई लोगों से भी पूछताछ की जाती है परंतु किसी भी पक्ष को "जिरह" अर्थात क्रॉस-एग्जामिनेशन या प्रतिपरीक्षा का अवसर नहीं दिया जाता। क्या ऐसा किया जाना उचित है या फिर अन्याय। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का लैंडमार्क जजमेंट पढ़िए:- 

कर्मचारी ने विभाग की जांच की प्रक्रिया पर सवाल उठाया था

पंचायत विभाग के कर्मचारी संजीव कुमार यादव द्वारा पुनर्विचार याचिका प्रस्तुत की गई थी। जिला पंचायत, जशपुर और कमिश्नर, सरगुजा संभाग ने 2017 और 2018 में उनके खिलाफ विभागीय जांच में दोषी पाए जाने पर चार वार्षिक वेतन वृद्धि (इंक्रीमेंट) को संचयी प्रभाव से रोकने का आदेश दिया था। याचिकाकर्ता ने इन आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी। इसमें तर्क दिया कि उन्हें गवाहों से जिरह का मौका नहीं दिया गया और जांच प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ थी। 23 जनवरी 2025 को सिंगल बेंच ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि जांच निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार की गई थी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने रिट अपील दायर की, जिसे खंडपीठ ने 18 मार्च 2025 को खारिज कर दिया।

कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर जिरह शुरू की

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन वहां भी उसकी विशेष अनुमति याचिका 8 अगस्त 2025 को खारिज हो गई। उसने फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और यह पुनर्विचार याचिका दायर की। याचिका में दलील दी गई कि सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी को शुरुआती स्तर पर खारिज किया था, गुण-दोष के आधार पर नहीं इसलिए हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जा सकती। याचिका में कहा गया कि कोर्ट के 18 मार्च 2025 के आदेश में तथ्यात्मक त्रुटि है। उन्होंने दावा किया कि हाईकोर्ट के आदेश में यह उल्लेख गलत है कि जांच रिपोर्ट 9 जून 2016 को प्राप्त हुई थी, जबकि उन्हें सजा के आदेश से पहले रिपोर्ट कभी दी ही नहीं गई थी। 

हाई कोर्ट में 50000 का हर्जाना लगाकर याचिका खारिज की

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को अस्वीकार करते हुए विशेष रूप से ‘वकील बदलने’ की प्रवृत्ति पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने हर स्तर पर अलग वकील नियुक्त किया इसलिए साफ है कि याचिकाकर्ता भ्रामक याचिका दायर करके और अलग वकील नियुक्त करके कोर्ट का समय बर्बाद कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि यह याचिका 2 लाख रुपए के हर्जाने के साथ खारिज किए जाने योग्य है। हालांकि वकील द्वारा बार-बार बिना शर्त माफी मांगने पर विचार करते हुए कोर्ट ने हर्जाने की राशि घटाकर 50 हजार रुपए कर दी। याचिकाकर्ता को यह राशि एक महीने के भीतर जमा करनी होगी अन्यथा इसे भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल किया जाएगा।
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