नई दिल्ली, 21 दिसंबर 2025: भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के मामले में राजस्थान हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है, जिसका उल्लेख आने वाले दिनों में कई मामलों में किया जाएगा। हाई कोर्ट का कहना है कि, यदि किसी कर्मचारी को रिश्वत की रकम के साथ गिरफ्तार किया गया है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह भ्रष्टाचार का दोषी है। भ्रष्टाचार के लिए दंडित करने से पहले कर्मचारी का भ्रष्टाचार प्रमाणित भी होना चाहिए। सिर्फ ट्रैप में पकड़े जाना यानी रिश्वत की रकम बरामद होना ही आरोपी को सजा देने के लिए काफी नहीं है।
RPF के तीन कर्मचारियों को ACB ने रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया था
ये मामला 2007 का है, जब सीकर में RPF के कैलाश चंद सैनी, जगवीर सिंह और संवर लाल मीणा को ACB ने एक शिकायतकर्ता चिरंजी लाल से 5,000 रुपये रिश्वत लेते पकड़ने का दावा किया था। आरोप था कि ये पैसे शिकायतकर्ता के भाई का नाम एक क्रिमिनल केस से हटाने के लिए मांगे जा रहे थे। कहानी कुछ यूं शुरू हुई कि जून 2007 में शिकायतकर्ता का भाई रामनिवास जयपुर में टिकट लेकर बाहर आया तो RPF अधिकारी ने उसे अवैध टिकट बेचने का आरोप लगा टिकट जब्त कर लिए। अगले दिन दोनों भाइयों के खिलाफ RPF चौकी में केस दर्ज हो गया। चौकी प्रभारी कैलाश चंद सैनी से मिलने पर रिश्वत की डिमांड हुई, तो शिकायतकर्ता ने ACB को खबर कर दी। ट्रैप लगा, पैसे बरामद हुए।
जयपुर की ACB स्पेशल कोर्ट ने तीनों कर्मचारियों को सजा सुनाई थी
तीनों कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएं 7, 13(1)(d), 13(2) और आईपीसी की धारा 120-बी के तहत एफआईआर दर्ज की गई। 2023 में जयपुर स्थित एसीबी की विशेष अदालत ने तीनों को एक वर्ष के कारावास और 5,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके बाद तीनों ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
कर्मचारियों ने हाई कोर्ट को बताया कि, शिकायतकर्ता और उसके भाई के खिलाफ मामला सही पाया गया था। कैलाश चंद सैनी ने 24 जुलाई 2007 को जांच पूरी कर चार्जशीट अनुमोदन हेतु डीएससी (डिविजनल सिक्योरिटी कमिश्नर) के कार्यालय भेज दी थी। इसलिए उस समय शिकायतकर्ता का कोई कार्य उसके पास लंबित नहीं था। इसलिए भ्रष्टाचार का प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। कर्मचारियों ने हाई कोर्ट को यह भी बताया कि उन्होंने किसी भी प्रकार की रिश्वत की मांग नहीं की थी। अभियोजन पक्ष की ओर से इस बात का कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया है।
ACB ने केवल गिरफ्तारी की सबूत नहीं जुटाए
हाईकोर्ट में जस्टिस आनंद शर्मा की सिंगल बेंच ने फैसला पलट दिया। कोर्ट ने कहा कि,रिश्वत की मांग करने का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला, न ही ये साबित हुआ कि कोई काम लंबित था जिसके बदले पैसे लिए जा रहे थे। कोर्ट ने याद दिलाया कि कानून का बेसिक प्रिंसिपल है, आरोपी तब तक बेगुनाह है जब तक उसका गुनाह संदेह से परे साबित न हो जाए।
डिमांड, एक्सेप्टेंस और करप्ट इंटेंट पूरी चेन को प्रूव करना जरूरी है
इस फैसले से एक मैसेज तो साफ गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली एजेंसियों को अब और मजबूत सबूत एकत्रित करने होंगे, वरना कोर्ट में टिकना मुश्किल हो सकता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में ये एक रिमाइंडर है कि केवल पकड़ना काफी नहीं, पूरी चेन (डिमांड, एक्सेप्टेंस और करप्ट इंटेंट) को प्रूव करना जरूरी है।
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